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परमपूज्य गुरुदेव सौभाग्यमलजी म. सा. का 39वा पुण्यस्मृतीदिवस

परमपूज्य गुरुदेव सौभाग्यमलजी म. सा. का 39वा पुण्यस्मृतीदिवस

   गुणानुवाद सभा

परमपूज्य विभाश्रीजी म.सा. ने कहा कुछ व्यक्ती अपने जीवन से ही आनेवाली पीढियों पर अपनी छाप छोड जाते है, उनमें से ही गुरुदेव परमपूज्य सौभाग्यमलजी मारसाब| उन्होंने अपने स्तवन के माध्यम से अपने श्रद्धासुमन अर्पण किये|

देवेंद्रप्रभाजी मा.सा. ने भी गुरुदेव को महापुरुष कहते हुए समझाया की महान वही होते है जो दुसरो के लिये अपना जीवन व्यतीत करते है| जैसे गुरुदेव ने समाज उन्नती में अपना जीवन व्यतीत किया| गुरुदेव जन जन के हृदय सिंहासन पर विराजमान हैं| ये करुणा, दया के सागर थे| गुरुदेव के बारे में कहा की पहले उन्होंने काम से नाम बनाया और अब हमारे उनके सिर्फ नाम से काम होते हैं| गुरुदेव की कृपा हम सब पर बरसती रहे ऐसा भाव रखा|

स्वर्णश्रीजी म.सा. ने कहा देव गुरु धर्म ये तीन तत्त्व है, जिनके मन में इनके प्रति श्रद्धा है वही धर्मस्थान में पहुॅंचते हैं| गुरुदेव का जीवन, उनका व्यक्तित्व-कृतित्व अलौकिक था| व्यक्तित्व याने जिनके पास जाने की हमे बार-बार इच्छा होती है, तो समझना कि उनका आभामंडल पावरफुल है| कृतीत्व याने कर्तव्य| जीवन दुसरे के लिए ही व्यतित किया गुरुदेव ने| जोडने का कार्य किया| संघ, समाज, परिवार के साथ साथ श्रमणसंघ को भी जोडा| अंत में गुरुदेव का नामस्मरण से ही हमे ऊर्जा प्राप्त होती है कहकर अपने शब्दों को विराम दिया|

परमपूज्य सुमन प्रभाजी म.सा. ने कहा-          महापुरुषों के नामस्मरण से ही तीर्थंकर गोत्र का बंध होता है| अपना श्रद्धा सुमन गुरुदेव के चरणों में अर्पण करती हूॅं ऐसा कहकर सुमनप्रभाजी म.सा. ने गुरुदेव को भाव वंदन किया|

थे अगणित गुण समूही विचार-वाणी में थी गरिमा, ससीम शब्दों में असीम गुणों की न कह सकूंगी महिमा| गुरुदेव भव्य और दिव्य है| भव्यता बाहरसे शारीरिक रचना दिव्यता अंदर से|

 गुरुदेव कर्म से महान थे| 1897 में मध्य प्रदेश के सरवानीया गांव में गुरुदेव का जन्म हुआ| पिता चौथमलजी और माता केशरबाई फाफरिया| ढाई साल की उमर में ही माँ का साया उठ गया| समय रहते पिता के साथ रतलाम आए| श्रीलालजी मारसाब का चातुर्मास वहा पर चल रहा था| उम्र के छे साल में ही पिता का भी साया उठ गया| तब यह बालक अनाथ हो गया|

 भाग्य का साथ था, देव गुरू धर्म की कृपा थी, एक उत्तम सुश्रावक श्रीमान मियाचंदजी खिंवसरा उन्हें साथ लेकर आए| खाचरोद में | और उस परिवार ने भी उस बालक की पालन पोषण की जिम्मेदारी उठा ली |

किसनलालजी म.सा. से शिक्षा के पश्चात अपने गुरु सानिध्य में शास्त्र अध्ययन किया| आप श्रमणसंघ संघटन के समर्थक/ प्रेरक थे श्रमण संघ की स्थापना में बडा सहयोग दिया|

 12 वर्ष की उम्र में हमारे उपप्रवर्तिनी सुमनप्रभाजी मारसाब को धुलिया के प्रांगण में दीक्षा प्रदान कर शिष्यत्व प्रदान किया|

जैन श्रावक संघ राजगुरुनगर

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