चेन्नई. मंगलवार को श्री एएमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने कहा कि पंचम गंधर्व सुधर्मास्वामी कहते हैं कि परमात्मा प्रभु का अंतरंग स्वरूप जैसा ही बहिरंग स्वरूप है। जिनका अंतरंग के आधार पर बहिरंग बनता है वे सिद्धी के मार्ग पर होते हैं। जिनका बहिरंग के आधार पर अंतरंग स्वरूप बनता है वे संसार के मार्ग पर होते हैं। दोनों ही काम चलते रहते हैं। कुछ लोग प्रभाव से भाव बनाते हैं और कुछ के भाव का प्रभाव होता है।
कुछ लोग प्रभाव, सत्ता और संपत्ति से चलते हैं पर कुछ लोगों के भाव, सत्य और संयम का प्रभाव होता है। चंदनबाला के पास प्रभाव नहीं था भाव था। हम लोग आचरण सुधारने की बात करते हैं। वैसा कोई कर भी लेता है लेकिन उसका आचरण सुधरने की गारंटी नहीं है।
परमात्मा को धीरन सेठ चार महिने प्रार्थना करता है फिर भी नहीं पधारते हैं और वहां पारणा किया जिसके मन में भक्ति भी नहीं थी। प्रेम और बुलावा इसका आधार ही नहीं है। सबसे बड़ा आधार आपकी प्रज्ञा है। बुलाया या नहीं बुलाया इस आधार पर मत सोचो। सभी के कल्याण, आनन्द, समाधान और सिद्धि के बारे में सोचो, जाने से प्रोग्रेस हो तो जाओ नहीं तो मत जाओ। उत्तराध्ययन में कहा गया है कि गुरु शिष्य को थप्पड़ मारता है, लेकिन उसके भाव कल्याण के लिए है, इसमें गुरु की प्रज्ञा का उद्देश्य शिष्य का कल्याण है।
भगवान महावीर ने निर्णय लिया कि मेरी मां परेशान है तो मैं दीक्षा नहीं लंूगा। एक तरफ रिषभदेव हैं कि उनकी मां लगातार रोती हैं फिर भी वे दीक्षा लेते हैं। आदमी के लिए व्यवस्था है व्यवस्था के लिए आदमी नहीं है। हम किसे प्रधान्य दे रहे हैं यह चिंतन का विषय है। कानून आदमी के लिए है आदमी कानून के लिए नहीं है। परमात्मा का एक ही उद्देश्य है कि प्रवाह और परंपराओं से मुक्त हो सर्वकल्याण का मार्ग प्रशस्त हो।
परंपरा है कि दीक्षा लेने के बाद किसी गृहस्थी को कोई वस्तु संत देता नहीं है। लेकिन भगवान महावीर ने दिया। लेकिन जिसमें कल्याण की भावना छिपी हो वह कार्य करने योग्य है। जो कल्याण का उद्देश्य रखते हैं वही व्यक्ति सूर्य के समान चमकते हैं। अंधकार को प्रकाशित कर दे ऐसा उनका जीवन बनता है। परमात्मा का धर्म अनुत्तर है। जो चलना नहीं चाहते, चल नहीं सकते, मन में मंजिल की तड़प नहीं है उन्हें भी जो लेकर चलता है, तीर्थंकर परमात्मा ऐसे ही नेता हैं। परमात्मा तत्क्षण निर्णय कर जनता का कल्याण करने वाले नेता हैं। वे आशुप्रज्ञ स्वयं हैं और उन्होंने दूसरों को भी आशुप्रज्ञ बनाया है। उनके पास जितने भी राजा, राजकुमार, रानियां जिसने भी दीक्षा ली उन्होंने तत्क्षण दीक्षा ली। उन्होंने जो मोक्षमार्ग का लक्ष्य स्वयं देखा उसे दूसरों को भी प्रदान किया। वे सहस्त्र नेत्रों से देखने वाले और सभी का एकसाथ मार्गदर्शन करने वाले हैं। जिन्होंने परंपराओं से बाहर जाकर काम किया है उन्होंने संघ और समाज को मार्गदर्शन कराया है। जिसने समाज की जीत के लिए परंपराएं तोड़ी उन्होंने समाज का कल्याण किया और जिन्होंने अपने सुख के लिए कदम बढ़ाए उन्होंने स्वयं और समाज का नुकसान किया।
घोर तपस्वी, कर्नाटक गज केसरी गणेशीलालजी महाराज की जन्म जयंती पर बोलते हुए कहा कि यह समाज उपकारियों को याद नहीं रखता है। जिस समय सारे लोग डरे हुए थे, उस समय तपस्वीराज ने डर से बाहर निकालने का अभियान चलाया। उन्होंने सबसे पहला प्रहार समाज के मिथ्यात्व पर किया, उन्होंने देवी के मंदिर में बलि प्रथा को बंद करवाकर हिंसा को रोका। लोगों की आस्था को जगाया।
गणेशीलालजी महाराज साहब ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्रवाद का पूरा समर्थन कर बहुत बड़ा योगदान दिया था लेकिन समाज ने उनके कार्यों का मूल्यांकन नहीं किया। उन्होंने व्यापारी समाज को सरकार से लडऩे के लिए तैयार कर दिया। धर्मराज्य का विरोध करना दोष है लेकिन अन्यायी और पाप के राज्य का विरोध होना ही चाहिए। उन्होंने अपनी धर्म सभा में खादी को अनिवार्य तक कर दिया। अनेकों गौशालाओं का निर्माण कराया, आज के समय में इतने बड़े कार्यों को करने के लिए सोचना पड़ जाएगा। उन्होंने पूरे दक्षिण भारत में धर्म की अलख जगाई, लोगों को जगाया। उनके पास तप, संयम और श्रद्धा का बल था कि उन्होंने खुलेआम लोगों को अंधश्रद्धा से बचाकर परमात्मा के सत्य मोक्ष मार्ग पर प्रशस्त किया। उन महापुरुष के प्रति सच्ची श्रद्धा यही होगी कि उनके शब्दों और शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारें और अनुशरण करें।