चेन्नई. मुनि संयमरत्न विजय व मुनि भुवनरत्न विजय ने बुधवार को काकीनाडा के श्री राजेन्द्र जैन भवन में मंगल प्रवेश किया। इस दौरान आचार्य महाश्रमण के शिष्य मुनि अर्हत् कुमार एवं अन्य संतगणों से आध्यात्मिक मिलन हुआ। मुनि अर्हत् कुमार ने कहा कि अध्यात्म जगत में संतों का बहुत बड़ा महत्व होता है।
हमें संतों की संगत करना चाहिए। गंगा पाप को, चंद्रमा ताप को तो कल्पवृक्ष संताप को दूर करता है, किंतु संत तो पाप-ताप और संताप तीनों का नाश करता है। गाय का रंग अलग-अलग हो सकता है,लेकिन उन सभी गाय के दूध का रंग सफेद होता है।
इसी तरह संप्रदाय अलग-अलग हो सकते हैं किंतु सब का लक्ष्य एक ही होता है। हमें बाहर की सफाई करने की अपेक्षा भीतर जमे जालों को साफ करने का प्रयास करना चाहिए।
मुनि संयमरत्न विजय ने कहा कि संत के पास अपना पद व कद लेकर नहीं जाना चाहिए अपितु मद (अहंकार) से रहित होकर जाना चाहिए। जिस प्रकार मंदिर के अंदर जाते समय जूते-चप्पल को बाहर ही उतारकर जाते हैं, वैसे ही प्रभु व गुरु के समक्ष हमें भी बिना किसी मान-सन्मान की चाहना के पद-प्रतिष्ठा से रहित होकर जाना चाहिए।
पत्नी, पुत्र व धन तो पापी को भी मिल जाता है, किंतु संत समागम व प्रभु कथा बड़ी दुर्लभता से प्राप्त होते हैं। संत के पास माया और अभिमान का त्याग करके जाना चाहिए।
मुनि भरतकुमार ने कहा कि साधु चलता-फिरता तीर्थ होता है। श्रेष्ठ साधना से हम हमारे जीवन को तीर्थमय बना सकते हैं। मुनि भुवनरत्न विजय, मुनि जयदीप कुमार ने प्रभु भक्ति गीत प्रस्तुत किया। प्रवचन के पश्चात सूर्याराव पेटा के श्री कुंथुनाथ जिनालय के निकट नूतन धर्मशाला के भूमिपूजन प्रसंग पर संतों ने आशीर्वाद प्रदान किया।