सोमवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज के प्रवचन कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस मौके पर उन्होंने कहा कि पदार्थ हटाओगे तो चाहत निष्फल हो जाएगी और चाहत हटाओगे तो पदार्थ निष्फल हो जाएगा।
उपाध्याय प्रवर ने बताया कि जो विषय है वही चक्र है और जो चक्र है वही विषय हैै। यदि चाहते हैं कि यह चक्र मन में न चले तो पदार्थ को न देखें। यदि पदार्थ सामने नहीं होगा तो विषय भी नहीं होगा। परमात्मा का कहना है कि यदि सहज उपलब्धता नहीं हो तो विकार उत्पन्न नहीं होता। उन्होंने ब्रह्मचर्य के नवाणं का पालन करने का मार्ग बताया। विकारों के रास्तों को बंद कर दें। जिस प्रकार यदि घास को चिंगारी का साथ न मिले तो वह चारा बनेगा और सकारात्मक काम में आएगा अन्यथा चिंगारी के संयोग से आग के साथ जलकर राख बन जाएगा।
परमात्मा ने कहा है कि यह चक्र बंद करो। एक को समाप्त करेंगे तो दूसरा अपने आप निष्फल और निष्क्रिय हो जाएगा। संघ, समाज, परिवार, मंा, बाप, गुरु हमें इस चिंगारी से बचाते हैं। लेकिन वर्तमान में तो माता-पिता ही ऐसे-ऐसे कार्य कर रहे हैं कि उनकी भावी पीढ़ी का भविष्य अंधकार मय नजर आता है। यदि इलाज नहीं कराया और बीमारी बढ़ती चली गई तो दुख नहीं होगा लेकिन इलाज कराते-कराते भी यदि बीमारी बढ़ती जाती है तो यह बड़े दुख की बात है। जो अपने विषय-वासनाओं में आकंठ डूब जाता है और उनमें आनन्द लेने लगता है उनका जीवन बिगड़ जाता है। भारतीय संस्कृति कहती है कि यदि आपके पास अच्छा चरित्र नहीं है तो तुम जीने लायक नहीं हो। लेकिन आजकल तो इसका विपरीत हो रहा है।
श्रेणिक चारित्र में बताया कि चित्रकार के पास चित्र देखकर और चेलना व उसके पिता की प्रतिज्ञा जानकर राजा श्रेणिक उससे विवाह करने का सोचता है जिसे उसने कभी देखा ही नहीं है। श्रेणिक अभयकुमार को पूरी बात बताता है। दोनों बाप-बेटों का रिश्ता व प्रेम इतना गहरा है कि अभयकुमार उसे आश्वस्त करता है और चेलना से मिलने का मार्ग खोजता है।
वह इत्र का व्यापारी बनकर उसके राज्य महल के पास जाता है, इत्र की खुशबूओं से मोहित राजकुमारी चेलना दासी को उससे इत्र मंगवाती है तो वह उसे हीरे जड़े हुए सोने के प्याले में इत्र भरकर भेजता है और कहता है कि हम तो श्रेणिक के राज्य में इसी प्रकार के इत्र परखने के लिए लोगों को देते हैं लेकिन आपके राज्य में तो किसी की भी हैसियत नहीं है इस प्रकार का इत्र लेने की। राजकुमारी चेलना दासी के द्वारा उसे महल में बुलवाती है। और वह श्रेणिक का और उसके राज्य का वैधव और संपन्नता और गुणों का बखान करता है तो चेलना के मन में भी श्रेणिक से विवाह करने की भावना होती है। अभयकुमार उसे श्रेणिक से मिलाने के लिए चेलना के महल से श्रेणिक के महल तक भूमिगत सुरंग का निर्माण करता है।
तीर्थेशऋषि महाराज ने जन्माष्टमी के अवसर पर श्रीकृष्ण के बारे में बताया कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसे पुण्य कार्य किए और दूसरों से भी कराए कि आने वाली चौबीसी में अपना तीर्थंकर नामकर्म का बंध कर लिया। सभी कर्मों को तोडक़र जो सिद्ध शिला पर पहुंचे उनकी आराधना इस पर्युषण पर्व में हम करें। हम उनके गुणों में से केवल शुभ को देखने वाले एक गुण का भी पालन कर लें तो हमारा जीवन सफल हो जाएगा।
श्रीकृष्ण का सबसे बड़ा गुण उनका सकारात्मक दृष्टिकोण था, वे सभी में सदैव शुभ और अच्छाईयों को ही देखते थे। जो गुणों को ही देखता है वही पूजनीय बनता है। जीवन में माता-पिता और गुरु हमारे अवगुणों को देखते हैं तो इसका कारण है हमारे अवगुणों को दूर करना और हम में सुधार करना। हम अपने जीवन में ऐसा नियम बनावें कि किसी की निन्दा न करें।
कार्यक्रम में अशोक छाजेड़, रेखा नाहटा, रेखा कांकरिया, विजयलक्ष्मी सुराणा की मासखमण की पच्चखावणी और अभिषेक-राखी छल्लाणी की सजोड़े तपस्या के पच्चखान हुए। चातुर्मास समिति के द्वारा इनका सम्मान किय गया और उपस्थित जनों ने तपस्वीयों के तप की अनुमोदना की।