कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मुथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा कि पतन के लिए एक ही कुअवसर काफी है। नौ माह की गर्भ पीड़ा से जन्मा बालक गलत औषधि के कारण एक क्षण में मरण को प्राप्त हो सकता है। जन्मों -जन्मों के पुरुषार्थ से प्राप्त सुसंस्कारित जीवन एक गलत आदत से बदनाम हो जाता है। मन को विकृत करने वाली कामना-वासना मन को रावण बना देती है।
आपके सुदंर बगीचे में सभी प्रकार के कमल खिले हैं और यदि आपका मित्र वहां आकर कांटे डाल जाए और आप उसे संकोच वश कुछ नहीं कहते तो उस बगीचे का हाल क्या होगा। अगर आपके दोस्त व्यसनी हैं और आप उनसे कुछ नहीं कहते और न ही उनका साथ छोड़ते तो आपके जीवन की क्या दुर्दशा होगी। क्या आपने कभी सोचा है कि आप की एक छोटी सी भूल जीवन को बरबाद कर सकती है। यह एक सच है कि पानी की एक बूंद उपवन को हरा-भरा नहीं कर सकती लेकिन एक चिंगारी पूरे भवन को जला सकती है। इसका अर्थ है कि सुसंस्कार को हमेशा ग्रहण करते रहना चाहिए।
वास्तविक का ज्ञान होने पर भी आज की युवा पीढ़ी कैरियर की अंधी दौड़ में शामिल होकर अनैतिक आचरण को जन्म दे रही है। आश्चर्य लगता है वस्त्रों का नाप शरीर से और अहंकार का नाप पद से तय करने वाला इंसान, धन की सीमा तय करने को तैयार ही नहीं है। इसलिए वर्तमान की युवा पीढ़ी और राजनेता अशांत है। मनमाने कानून बनाकर जनता का विश्वास खो रहे है। सोने के सिक्कों का जिस संस्कृति में चलन था उस संस्कृति को कैशलेस करने में लगे हैं। भारत की अस्मिता को दांव पर लगा रहे हैं।