जय जितेंद्र, कोडमबाक्कम् वड़पलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज तारीख 4 अगस्त गुरुवार, परम पूज्य सुधाकवर जी मसा के मुखारविंद से:-मंगलमय परमात्मा की मंगल वाणी का 29 वा अध्ययन सम्यक पराक्रम! पडिकम्मामि, निन्दामि, गरिहामि, ये आत्म शुद्धि की त्रिवेणी है! सामायिक से आत्मा का लाभ! प्रतिक्रमण में श्रावक श्राविका के लिए छ: आवश्यक सूत्र है! सामायिक की शालीन वेशभूषा समभाव आचरण जैनों की पहचान है! सामायिक बहुत ही बड़ी और उच्च कोटि की साधना है जिसके सामने कुबेर का धन भी व्यर्थ है!
सामायिक दो प्रकार के होती हैं
1) सम्यक वृत्ति: जो संत सतियों के लिए होती है!
2) देश वृति: श्रावक श्राविकाओं के लिए सामायिक सिर्फ 48 मिनट की होती है, क्योंकि आत्मा के परिणाम एक जगह पर 48 मिनट ही स्थिर रह सकते हैं!
सुयशा श्रीजी के मुखारविंद से:-जब कभी भी कोई भी जगह पर अच्छा काम हो रहा हो तो हमें उसमें मना नहीं करना चाहिए। हमारे सहमति हो या ना हो लेकिन किसी का भला हो रहा है किसी का अच्छा हो रहा है तो उसमें हमें अड़ंगा नहीं करना चाहिए! हम हमेशा परिवार दोस्त रिश्तेदार अड़ोस पड़ोस से घिरे रहते हैं! हमारा व्यवहार उसी के हिसाब से रहता है! प्रेम और राग में अंतर होता है! हम हमारे परिवार से प्रेम करते हैं जिसमें अपेक्षाएं नहीं होती है! हम दूसरों से लेन देन में, रिश्ते निभाने में, हमारी हैसियत और दूसरों की हैसियत की तुलना करके उसी के हिसाब से लेन देन करने को “राग” कहते हैं! यहां पर हम अपने व्यवहार के हिसाब से तौर-तरीकों के हिसाब से दूसरों से अपेक्षाएं रखते हैं!
लेकिन आज हम सबसे ही कोई ना कोई अपेक्षा रखते हैं। और हमारा प्रेम उन अपेक्षाओं पर ही निर्भर होता है। इसी कारण हमारे रिश्ते खोखले होते जा रहे हैं। कभी भी कहीं भी कोई चिर परिचित दोस्त या रिश्तेदार मिल जाए और सिर्फ मुस्कुरा कर निकल जाए तो हम असमंजस में पड़ जाते हैं की वह बोला क्यों नहीं… मिला क्यों नहीं..? लेकिन संयुक्त परिवार में ऐसा नहीं होता है, एक दूसरे के सुख दुख में काम आते हैं जिससे stress या depression की संभावना कभी भी नहीं होती है! आज की धर्म सभा में श्रीमान अशोक जी तालेड़ा ने 32 उपवास, श्रीमती सुशीला जी बाफना ने 24 उपवास, एव मनीषा जी लूंकड ने 19 उपवास के प्रत्याख्यान किए। इसी के साथ कई धर्म प्रेमी बंधुओं ने विविध तपस्याओं के प्रत्याख्यान ग्रहण किए।