किलपाॅक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केशरसूरी समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. ने चित्त दमन नामक अधिकार की विवेचना करते हुए कहा चित्त दमन के लिए यम और नियम का पालन करना अनिवार्य है।
यम यानी पांच महाव्रत और नियम यानी पांचों महाव्रतों को साधने के लिए बनाए नियम का पालन करना। अपने अंतःकरण से इंद्रियों को वश में करना है, उसके लिए ‘आवश्यक’ क्रियाओं से जुड़ना अनिवार्य है। ज्ञानी कहते हैं बड़ा तप करना अपना- अपना विषय है, पर किसी भी तरह के पचक्खान लेना ‘आवश्यक’ है।
आचार्यश्री ने कहा आत्मनियंत्रण के लिए मनोनियंत्रण और मनोनियंत्रण के लिए विषयनियंत्रण आवश्यक है। विषय का नियंत्रण पचक्खाण नामक नियम से आता है। विषय/ पाप के नियंत्रण से पाप काबू में आते हैं। ज्ञानी कहते हैं पचक्खाण ऐसा होना चाहिए जिसमें आत्मा की शोभा बढ़े। उन्होंने कहा धर्म लोक के लिए नहीं है, यह अंतर कल्याण के लिए है।
कारण बिना अपवाद का उपयोग नहीं करना चाहिए। छूट होने पर भी अपवाद का उपयोग नहीं करना विवेक है। छूट ले ही नहीं और समग्र त्याग करना, वह विरति है। छूट लेने की कामना नहीं हो, वह विरक्ति है। विषयों का नियंत्रण पचक्खाण से होता है, इंद्रियों का नियंत्रण क्रियाओं से होता है।
मन को नियंत्रण करने के लिए ज्ञानयोग काम करता है क्योंकि ज्ञान योग ही आत्मा का स्वभाव है। उन्होंने कहा ज्ञान एक ऐसी चीज है जो दिए बिना बढ़ती नहीं है, मतलब कि पाया हुआ ज्ञान अवसर- अवसर पर विवेकी जनों को बांटना ही चाहिए। ज्ञानयोग पाने के लिए स्वाध्याय से जुड़ जाओ। इन तीनों का पालन करने के बाद चित्त का दमन करने के लिए ध्यानयोग करना चाहिए। विकृत आत्मा यानी हमने हमारी आत्मा में खराब संस्कार रखे हैं, उसके नियंत्रण करने के लिए ध्यान-योग आवश्यक है।
इससे पूर्व मुनिश्री कृपार्यप्रभ विजयजी ने कहा आत्मा को भावित करने के लिए वैराग्य के तीन प्रकार हैं दुःखगर्भित वैराग्य, मोहगर्भित वैराग्य और ज्ञानगर्भित वैराग्य। जब दुःख से प्रभावित होकर संयम ग्रहण करें तो वह दुःखगर्भित वैराग्य होता है। जब सही ज्ञान नहीं होने पर मोह से वैराग्य हो जाए, वह मोहगर्भित वैराग्य है। संसार असार है, संयम उपादेय है, यह सोचकर ज्ञानगर्भित वैराग्य होता है। ज्ञान वैराग्य इन सबमें श्रेष्ठ है। जम्बूकुमार का वैराग्य ज्ञानगर्भित वैराग्य था।