ग्यारहवीं पुण्यतिथि पर सामूहिक आयंबिल, अनुकंपा के कई कार्यक्रम हुए
गुजरातीवाड़ी श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ में विराजित आचार्य मेघदर्शनसूरीश्वर के सानिध्य में युगप्रधान आचार्यसम चन्द्रशेखरविजय महाराज की 11वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष में गुणानुवाद सभा का आयोजन हुआ। इस मौके पर संघ में सामूहिक आयंबिल तप तथा अनुकंपा के कार्यक्रम आयोजित किए गए। पंन्यास महाराज के जीवन पर आधारित आर्टगेलेरी का प्रदर्शन हुआ।
आचार्य ने गुणानुवाद सभा में कहा कि पंन्यास चन्द्रशेखरविजय महाराज जिनशासन के विशिष्ट प्रभावक थे । धर्मरक्षा- संस्कृतिरक्षा- राष्ट्रीयरक्षा में उन्होने अविस्मरणीय योगदान दिया था। उनका जीवन अटूट करुणा भावना से ओतप्रोत था। दुष्काल- भूकंप- सुनामी -बुंदेलखंड की तबाही की बेला में उनकी करुणा से कल्पनातीत सहायता का कार्य हुआ। तेजाब भरी कलम से सजायी उनकी 300 पुस्तकों ने हजारों युवाओं का जीवन परिवर्तन कर दिया। नरेन्द्र मोदीजी जब गुजरात के सीएम थे, तब हर रोज रात को सोने से पहले उनकी राष्ट्र और संस्कृति रक्षा की पुस्तकें पढा करते थे | विश्व हिन्दू परिषद के प्रवीणजी तोगडीया, आरएसएस के मोहनजी भागवत आदि कई लोग उनकी संस्कृति के विचारों से प्रभावित थे। वे संस्कृति रक्षा के लिये पंन्यास महाराज का मार्गदर्शन भी लेते थे।
उन्होंने कहा कि उनकी वाणी का अद्भुत प्रभाव था कि 10-15 हजार तक का जनसैलाब उनको सुनने के लिए उमड़ पड़ता था। संपूर्ण योग्यता होने के बावजूद उन्होंने आचार्य पद को स्वीकार नहीं किया। फिर भी उनको स्वयंभू रूप से युवाओं के द्वारा तपोवनी, बालकों द्वारा गुरु मां, जिनशासन के श्रावकों द्वारा ‘जिनशासन का शेर’, तो गच्छाधिपति जयघोषसूरीजी द्वारा युगप्रधान आचार्यसम पद के द्वारा नवाजा गया। वे खुद कोट्याधिपति परिवार में पैदा हुये थे । जन्म के साथ ही मां ने शासन दीपक बनने का आशीर्वाद दिया था। उनकी दीक्षा के दिन बम्बई का शेयर बाजार बंद रहा था और कई सारे वर्तमान समाचार पत्रों में उनकी खबरे प्रकाशित होती थी।
उन्होंने बताया कि अपने जीवनकाल में उन्होंने 20 हजार श्लोक कंठस्थ किये थे। वर्तमान में 130 से ज्यादा उनका शिष्य परिवार है। बचपन से ही बच्चों को संस्कार देने हेतु दो रेजीडेन्शीयल तपोवन स्कूल बनाने की प्रेरणा दी। दो प्री डे-स्कूल भी उनकी प्रेरणा से कार्यान्वित है। वे अबोल जीवों के बेली थे, तो संस्कृति के मशालची थे, शासन रखवाले थे, तो युवाओं के भगवान थे। महावीर भगवान के 2500वें जन्मकल्याणक के उपलक्ष में होने वाली उजवणी में उन्होंने शास्त्रीयता लाने हेतु अथक पुरुषार्थ किया।
उन्होंने कहा कि कई आचार्य कई सालों तक मिलकर जो कार्य न कर सके, ऐसा कार्य उन्होंने अकेले करके दिखलाया है और अंत समय पर शिष्य, संस्था, शरीर आदि की चिन्ता से मुक्त होकर सिर्फ अपनी आत्मा की सदगति और दृष्टि स्वरूप मौन ग्रहण कर लिया। अंत समय में वीर, वीर शब्द के उच्चारण के साथ उनकी पवित्र आत्मा अपनी आगे की साधना करने की ओर प्रयाण कर गई। ऐसे महापुरुष के गुणों का स्मरण करने से कई पापों का समूल नाश होता है। इस मौके पर 11000 से भी ज्यादा डिब्बे भरकर अन्नदान किया गया और आर्ट गेलेरी द्वारा उनके जीवन तक पहुंचने का प्रयास हुआ।