जैन स्थानक बठिंडा में प्रवचन करते हुए डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने शरीर की क्षण भंगुरता का वर्णन किया, हमारा यह शरीर आगमिक भाषा में औदारीक शरीर कहलाता है! जो पंच भूतों से विनिर्मित हुआ है अर्थात पृथ्वी पानी वायु अग्नि व आकाश तत्व से इस देह का निर्माण हुआ है जिसे संक्षपित में कहा जाता है यह माटी की काया एक दिन पुन : माटी में ही समा जाती है! जानते हुए भी हम अनजान बन कर व्यर्थ के कार्यों में इस मानव जीवन को गंवा बैठते है! मुनि जी ने मानव रत्न की मूल्यता को उदारहण रूप में समझाया गरीब किसान को रत्न के प्रभाव से मन में जो जो कल्पना करता जाता उस रत्न के प्रभाव से उसकी तमाम इच्छाएं खाने पीने घर परिवार दास दासी सब कुछ पा गया हाथ में बहुमूल्य रत्न था, सोते हुए एक कौआ नजर आया, उसे भगाने उडाने के लिए उस अमूल्य रत्न को ज्यों ही फेंकता है त्यों ही उसकी सारी रिद्धि सिद्धि सम्पदा समाप्त हो जाती है!
कमोबेश इस मानव रत्न को हम भी व्यर्थ में गँवाकर बाद में पश्चाताप करते है! प्रभु महावीर ने इस शरीर से जन्म जन्म के पापों को समाप्त कर दिया! बेशक़ इस हांडमास निर्मित शरीर का विशेष महत्व नहीं रह पाता पर इससे आत्म कल्याण की अपूर्व क्षमता निहित है!सनत कुमार चक्रवर्ती अनाथी अणगार नमि राजऋषि इसी देह पर गर्व करते थे परिणाम स्वरूप शरीर में व्याधिया उत्पन्न हो गई, पश्चाताप कर के अपनी व्याधिया समाप्त करते हुए सन्यास मार्ग को अपना लेते है! संसार का धरती माता का वैभव धरती पर ही रह जाता है!
कुटुंब कबीला भी मरनौपरान्त साथ नहीं दे पाते अत : शरीर से धर्म मार्ग को अपनाना है! सभा में साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी ने काल चक्र का वर्णन करते हुए कहा पाप के कारण कई बार जन्म मरण कर लिया पर लाभ नहीं उठा पाए! जो अवसर आया है उसका पुरा पुरा लाभ लें, तप जप स्वाध्याय ध्यान क्षमा की आराधना कर जीवन को सफल बनाएं!महामंत्री उमेश जैन ने सूचना देते हुए कहा कि दिनांक 4 सितम्बर से पर्युषण पर्व प्रारम्भ हो कर 11 सितम्बर तक चलेंगे! इन दिनों समाज में धार्मिक आयोजन होंगे उसमें सभी सहयोग प्रदान करें