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नोर्थटाउन बिन्नी में तपस्वियों का पारणा महोत्सव सानंद संपन्न

नोर्थटाउन बिन्नी में तपस्वियों का पारणा महोत्सव सानंद संपन्न

आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरीश्वरजी मुनि श्री महापद्मसागरजी एवं साध्वी हर्षरत्नाश्री जी के सान्निध्य में श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के तत्वावधान में सिद्धितप, सामूहिक अट्ठाई तप, व मोक्षदंडक तप पारणा का भव्य व दिव्य आयोजन किया गया, तपस्वियों को पारणा करवाने का लाभ शा तिलोकचंदजी थानमलजी परिवार ने लिया। इस अवसर पर जैन समुदाय के गणमान्य लोग उपस्थित रहें। प्रसंग के तहत आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने कहा कि तीर्थंकर जहां तपस्या करते हैं, देवता वहां खुशियां नहीं मानते।

तीर्थंकर परमात्मा जिस आंगन में पारणा करते हैं, उस आंगन में देवता ख़ुशी मानते हैं। देवता वहां बधाई देते हैं जहां तपस्वी पारणा करते हैं। उन्होंने कहा 1 अट्ठाई की छोड़िए, सैकड़ों तपस्वियों का पारणा आज यहां होने वाला है। उन्होंने आगे कहा कि तपस्वी अपने जीवन की दशा स्वयं निर्धारित करते हैं, जबकि सामान्य व्यक्तियों का जीवन पूर्णत: परिस्थितियों के अधीन होता है। तपस्वी तप की ऊर्जा से परिस्थिति की प्रतिकूलता को भी अपने अनुकूल बना लेते हैं। वस्तुत: तप करना या तपश्चर्या एक वैज्ञानिक प्रक्त्रिया है, जिसकी कुछ मर्यादाएं हैं। सनक में आकर कुछ भी करते रहने का नाम तप नहीं है।

नमक न खाना, नंगे पांव चलना, भूखे रहना आदि क्त्रियाओं से शारीरिक कष्ट तो अवश्य होता है, किंतु कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं प्राप्त होता। सुनिश्चित संकल्प के साथ तपश्चर्या पर अमल गुरु के निर्देशन में ही करना चाहिए। तप से हमारे सुप्त संस्कारों का जागरण होता है और यह जागरण हमारे आध्यात्मिक विकास को गति देता है। तप का उद्देश्य मात्र ऊर्जा का अर्जन ही नहीं, उस ऊर्जा का संरक्षण व सुनियोजन भी है। जो अपनी ऊर्जा को संरक्षित कर लेता है वह साम‌र्थ्यवान हो जाता है। तपश्चर्या कोई चमत्कार न होकर स्वयं का परिष्कार है। जहां परिष्कार है वहां चमत्कार स्वत: होते हैं, क्योंकि परिष्कार से चित्ता ऊर्जावान होता है।

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