महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री रमेश कुमार जी के सान्निध्य में पर्युषण पर्व की आराधना ट्रिप्लीकेन स्थित तेरापंथ भवन में तप त्याग से आराधना चल रही है । आज अणुव्रत दिवस का आयोजन किया गया ।
धर्म और नैतिकता को व्याख्यायित करते हुए मुनि रमेश कुमार ने कहा धर्म के साथ नैतिकता र और अध्यात्म का गहरा सम्बन्ध है । धर्म एक पक्षी है तो अध्यात्म और नैतिकता उनकी दो पांखें हैं ।
पंखहीन पक्षी कभी गति नहीं कर सकता । आज धर्म और नैतिकता के नीचे पड़ी हुई एक लम्बी दूरी को देखते हुए ऐसा लगता है कि धर्म रूपी पक्षी के दोनों पंख कांट दिये गए हैं ।
बैचारा दु:खो के अभाव में तड़प रहा है । उड़ नहीं सकता । नैतिक व्यक्ति ही धार्मिक हो सकता है । यह उद्घोषणा करते मुनि रमेश ने आगे कहा आज कठिनाई यह है कि धर्म और नैतिकता अन्तहीन दूरी पर खड़े हैं ।

1अरब से ज्यादा की आबादी वाले।हमारे देश में। धार्मिक कितने करोड हैं और नैतिक व्यक्ति कितने ? बहुत बङी आज की विडंबना है कि आदमी धार्मिक है परन्तु नैतिक नहीं । इस दूरी मिटाने के लिए ही आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन का प्रारंभ किया । अणुव्रत एक नैतिक आन्दोलन है। यह सम्प्रदाय मुक्त है।
प्रश्न उपस्थित हुआ कि देश में अनेक धर्म संप्रदाय काम कर रहे हैं फिर इस नये धर्म को चलाने की क्या अपेक्षा है । आचार्य तुलसी ने कहा – यह आंदोलन धार्मिक बनाने के लिए नहीं है । नैतिक और ईमानदार आदमी पैदा करने के लिए है । नैतिकता वस्तुतः धर्म का प्रतिफल है । जहां नैतिकता का विकास नहीं वहां धार्मिक्ता नहीं है हो सकती ।
अणुव्रत दिवस पर अपने विचार रखते हुए *मुनि सुबोध कुमार ने कहा -* अणुबम, आतंक, हिंसा का युग हैं । जो इच्छा हो जाती है उसे पाने के लिए नैतिक मूल्य गिरते जा रहे हैं । धर्म के दो स्वरुप है एक है उपासना दूसरा है चरित्र । हर व्यक्ति क्रिया कांड में लगा हुआ है ।
भौतिकवादी संस्कार आपको धर्म से दूर कर रहा है । चारित्र पक्ष धूमिल हो रहा है । चारित्र पक्ष को गौण करने से हमारी जड़ें खोखली हो रही है । नैतिक मूल्यों के जागरण के लिए आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन प्रवर्त्तन किया ।
नैतिक मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठित करने लिए अणुव्रत के छोटे छोटे नियमों का पालन होना चाहिए । भगवान महावीर ने श्रावकों के लिए बारह अणुव्रत की व्यवस्था दी । आचार्य तुलसी ने युग नैतिकता और चरित्र विकास के लिए अणुव्रत के ग्यारह नियम बनायें । जिन्हें किसी भी धर्म का अनुयायी स्वीकार कर सकता है ।
इससे पूर्व मुनि रमेश कुमार जी के महामंत्रोच्चारण से कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ । मुनि सुबोध कुमार जी ने जप का प्रयोग कराया । वरिष्ठ श्रावक मदनलाल जी मरलेचा ने अणुव्रत गीत से मंगलाचरण किया ।
संप्रसारक
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी ट्रस्ट ट्रप्लीकेन चैन्नई