श्री जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में सच्चे श्रावक अच्छे श्रावक प्रवचन श्रृंखला के अंतर्श्रागत वक के पन्दरहवें गुण का वर्णन करते हुए जयधुरंधर मुनि ने कहा नैतिकता के द्वारा इंसान अपनी एक अमिट छाप बना डालता है। न्यायप्रियता श्रावक का एक विशिष्ट गुण है। जो नैतिक होता है,वह प्रमाणिक भी होता है और वही धार्मिक बनता है।
न्याय और नीति- धर्म का अभिन्न अंग है। अत्याचार, बेईमानी, धोखाधड़ी, विश्वासघात रूपी अन्याय से भीती रखते हुए न्याय और नीति से प्रीति होनी चाहिए। न्यायपूर्ण एवं सही तरीके से प्राप्त धन संपत्ति है और अन्याय एवं गलत तरीके से कमाया हुआ पैसा विपत्ति को आमंत्रण देता है। धन के लिए व्यक्ति को धर्म नहीं छोड़ना चाहिए।
कमाई की भूख कहीं नैतिकता को ना खा जाएं- इस बात की सतर्कता नितांत आवश्यक है। जिस अर्थ की जड़ में पाप है, अन्याय है, वह धन कभी सुख नहीं दे सकता। सुख धन से नहीं, मन से मिलता है। मन में समता है, नीति है, निर्भयता है तो वहाँ शांति है।
मुनि ने कहा कि अन्याय और अनीति से अर्चित धन कभी नहीं टिक सकता क्योंकि अनीति की जड़ नहीं होती। जो व्यक्ति पैसे को ही परमेश्वर, पिता और पुत्र समझता है और पैसे की खातिर मित्र, स्वामी और राष्ट्र से भी धोखाधड़ी करने के लिए तैयार हो जाता है, वह पाप कर्मों का बंध करता है, सदैव बेचैन रहता है।
न्याय का पक्ष लेने वाला व्यक्ति सत्य और धर्म का अनुयायी बनता है और अपने कर्तव्य के प्रति वफादारी दिखाते हुए निष्पक्ष रुप से न्याय सुनाता है, उस समय चाहे उसका संबंधी भी अपराधी क्यों न हो।