*स्थल: श्री राजेन्द्र भवन चेन्नई*
विश्व पूजनीय प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी महाराज साहब के प्रशिष्यरत्न राष्ट्रसंत, श्रुत समुद्र,श्रीमद् विजय जयंतसेनसुरीश्वरजी म.सा.के कृपापात्र सुशिष्यरत्न श्रुतप्रभावक मुनिप्रवर श्री डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा. के प्रवचन के अंशl
🪔 *विषय मेरा प्रेम प्रभु नेम*
~ प्रभु नेम का जन्म कल्याणक यानी जगत के सर्वजीवों को पवित्रता और अहिंसा वाले बनाने का परम पर्व।
~ नेमी प्रभु के ध्यान में जो भक्त लीन होता है उसे भी नेमी प्रभु का परम ऐश्वर्या का अनुभव होता है।
~जब तक हमारी दृष्टि शरीर, सुख, दुख, मान, अपमान तक है तब तक नेम प्रभु का प्रेम पाना कठिन है।
~ नेमी प्रभु का रागी जीव जगत के कोई भी पदार्थ, घटना, स्थिति में न राग, ना द्वेष, इन दोनों दशा से मुक्त परमसमता में ही रहता है।
~नेमिका ज्ञानी जीव सर्व मानवों में ज्ञान दशा के बल से परम ज्ञानमय अवस्था को ही देखता है।
~ नेमि का ध्यानी जीव प्रभु के द्रव्य, गुण, पर्याय जैसे हैं वैसे ही स्वयं के द्रव्य, गुण, पर्याय को मानता ही है।
~ प्रभु नेमिनाथ की सम्यक् आराधना के बल से हमारे भीतर में भी जो परम प्रिय नेमी विराजमान है उसका अनुभव हो ही सकता है ।
~ प्रभु राजेंद्र सुरीश्वरजी म. मैं स्वयं की चेतना की पवित्रता के सामर्थ्य ता से अनंत जिवो के ह्रदय में श्रद्धा और क्रिया का समयक् उद्धार किया था।
अहो! परम पवित्र नेमिनाथम् ।
*”जय जिनेंद्र-जय गुरुदेव”*
🏫 *श्री राजेन्द्रसुरीश्वरजी जैन ट्रस्ट, चेन्नई*🇳🇪