Share This Post

Featured News / ज्ञान वाणी

नीति, रीति और प्रीति से ही करें धन संचय: साध्वी कंचनकुंवर

नीति, रीति और प्रीति से ही करें धन संचय: साध्वी कंचनकुंवर

चेन्नई. एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकुंवर व साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधाÓ के सानिध्य में साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने कहा कि अनादीकाल से सो रही आत्मा की मोहनिद्रा नहीं खुली है। प्रभु कहते हैं जागना और सोना दोनों अवस्था अच्छी भी है और बुरी भी। जो दूसरों को असाता दे रहा है वह सोया हुआ ही अच्छा है और जो दूसरों को साता पहुंचाता है उसका जागना अच्छा है। संसार में दो प्रकार के व्यक्ति हैं सांसारिक और संन्यासी। सांसारिक व्यक्ति के लिए धन की जरूरत होती है, इसके बिना उसकी गृहस्थी नहीं चलती। लेकिन अर्थ इस प्रकार संग्रहित करे कि गृहस्थी में रहकर भी साधना हो जाए।

संसार में दो प्रकार के व्यक्ति हैं सांसारिक और संन्यासी। सांसारिक व्यक्ति के लिए धन की जरूरत होती है, इसके बिना उसकी गृहस्थी नहीं चलती। लेकिन अर्थ इस प्रकार संग्रहित करे कि गृहस्थी में रहकर भी साधना हो जाए।

अर्थोपार्जन न्यायसंपन्न हो। प्रभु ने कमाना मना नहीं किया है लेकिन नीति, रीति और प्रीति से धन कमाना है। ये सूत्र जीवन में आ जाए तो जिस व्यापार में आप हैं उसमें कोई टेंशन नहीं होगी। प्रेमपूर्वक अपना व्यापार करेंगे तो उसमें आगे से आगे बढ़ेंगे, गुस्सा करेंगे तो व्यापार नहीं चल सकता। कभी हल्की पुण्यवानी से नुकसान होता है, तो आवश्यकता के लिए मनुष्य गलत कार्य करने लगता है, येन-केन-प्रकारेण चोरी आदि से धन लेकर आता है, अकरणीय कार्य भी कर लेता है। लोभ के कारण ऐसा करना उचित नहीं।

प्रेमपूर्वक अपना व्यापार करेंगे तो उसमें आगे से आगे बढ़ेंगे, गुस्सा करेंगे तो व्यापार नहीं चल सकता। कभी हल्की पुण्यवानी से नुकसान होता है, तो आवश्यकता के लिए मनुष्य गलत कार्य करने लगता है, येन-केन-प्रकारेण चोरी आदि से धन लेकर आता है, अकरणीय कार्य भी कर लेता है। लोभ के कारण ऐसा करना उचित नहीं।

साध्वी नीलेशप्रभा ने कहा कि वीतराग प्रभु ने अपने ज्ञान से जो कुछ देखा, जाना वह भवि जीवों को उद्बोधन दिया। उन्होंने एक बोध सूत्र दिया- ‘जाग रे नरा जाग।Ó आत्मा अनादीकाल से संसार भ्रमण कर, मोहनिद्रा में व्यस्त, अभ्यस्त और अज्ञान में मस्त है इसलिए इसे जगाना अनिवार्य है। जिंदगी मिली है जागकर जीने के लिए।

जिसका अन्तरमन सोया है वह जागते हुए भी सोया है और जिसका अन्तरमन जगा है वह सोकर भी जाग्रत है। जन्म से मृत्यु तक का समय मिला है हमें, इसे सोकर न गंवाएं।

मानव भव जागने का अवसर है। मानव की तीन अवस्थाएं हैं सुसुप्त, स्वप्न और जाग्रत। हम सांसारिक मनुष्य स्वप्न की अवस्था में अनादीकाल से हैं। मनुष्य कल्पनाओं में खुली आंखें भी स्वप्न देखता है, शराबी की तरह अपना भान भूलकर किसी की नहीं सुनता।

ज्ञानी कहते हैं रात में बंद आंखों से और दिन में खुली आंखें से सपने देख रहे हो। तुम्हें उठकर द्वार खोलना है, ज्ञान का सूरज सामने मौजूद है। जीने के लिए स्वयं की आंखें चाहिए, दूसरों की आंखों से जीया नहीं जा सकता। जिनवाणी कहती है आत्मा को जगाना है तो स्वयं पुरुषार्थ करना होगा। आत्मा को जगाना है तो सद्गुरु का साथ मिले जो, जो आत्मा को जगाने के लिए प्रेरित करें।

जीने के लिए स्वयं की आंखें चाहिए, दूसरों की आंखों से जीया नहीं जा सकता। जिनवाणी कहती है आत्मा को जगाना है तो स्वयं पुरुषार्थ करना होगा। आत्मा को जगाना है तो सद्गुरु का साथ मिले जो, जो आत्मा को जगाने के लिए प्रेरित करें।

वाल्मीकी, धन्नाशालीभद्र, आचार्य जयमलजी ने एक ही बार गुरुवाणी को सुना और जाग्रत हो गए। एक पाई का हिसाब मिल जाए तो कितनी खुशी होती है, वैसे ही जन्म-जन्म का भूला हुआ हिसाब सुलझ जाए तो अनन्त खुशी होगी। जब कोई मोहनिद्रा से जागे तो उसकी दृष्टि, विचार, समझ बदल जाती है। जाग्रति बाह्य नहीं अन्तरात्मा की करनी है। जाग्रति एक बार हो जाए तो जीवन की दिशाा और दशा बदल जाए, ऐसा प्रयास करना चाहिए।

जब कोई मोहनिद्रा से जागे तो उसकी दृष्टि, विचार, समझ बदल जाती है। जाग्रति बाह्य नहीं अन्तरात्मा की करनी है। जाग्रति एक बार हो जाए तो जीवन की दिशाा और दशा बदल जाए, ऐसा प्रयास करना चाहिए।

धर्मसभा में अनेकों श्रद्धालुओं ने उपवास, आयंबिल आदि तपस्याओं के पच्चखान लिए। अनेकों श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही। दोपहर 2 बजे से अर्हम पुरुषाकार ध्यान साधना करवाई गई। 29 सितम्बर से प्रतिदिन 8.30 बजे से 29 दिनों तक के लिए पुच्छीशुणं सम्पुट साधना की शुरुआत होगी। 99

दोपहर 2 बजे से अर्हम पुरुषाकार ध्यान साधना करवाई गई। 29 सितम्बर से प्रतिदिन 8.30 बजे से 29 दिनों तक के लिए पुच्छीशुणं सम्पुट साधना की शुरुआत होगी। 99

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar