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निकाचित कर्म भोगे बिना छुटकारा नहीं: साध्वी मुदितप्रभा

चेन्नई. किलपॉक स्थित कांकरिया भवन में साध्वी मुदितप्रभा ने कहा सभी जीवों के प्रति मैत्री भाव रखें। पानी पर खींची लकीर तुरंत मिट जाएगी, रेत पर खींची लकीर का असर कुछ समय के लिए पर मार्बल के पत्थर पर की गई लकीर का असर उस मार्बल के टूटने तक रहेगा ।

इसी तरह हमारे द्वारा किए क्रोध का एवं आसक्ति भावों का असर अलग अलग काल तक रहता है । कर्मो के चार प्रकार के बंध होते हैं, अनुभाग बंध, स्थिति बंध, प्रकृति बंध और प्रदेश बंध। जिस प्रकार के और जिस मात्रा में बंध होते हैं उस प्रकार से कर्म बंध में तीव्रता का असर रहता है।

स्पृष्ठ बंध में हल्का बंध होता है, उसमें कषाय की मात्रा मंद होती हैं मिच्छामि दुक्कड़म से पाप की आलोचना हो सकती है। बंध में कषाय अधिक होने से पश्चाताप भावों से आलोचना हो जाती है।

निधत बंध में आसक्ति भावों की अधिकता के कारण आलोचना हेतु तपस्या अधिक करनी चाहिए। निकाचित कर्मो को तो भोगना ही पड़ता है, बिना भोगे छुटकारा नहीं होता।

ऐवंता मुनिवर ने अल्प कर्मो व अल्प आसक्ति वाले का बंध किया, तंदुल मत्स्य ने अल्प पर अधिक आसक्ति वाले कर्मो का बंध किया।

भरत चक्रवर्ती ने अधिक कर्म पर कम आसक्ति वाले भावों का बंध किया।

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