रक्षाबंधन पर प्रवचन देते हुए नार्थ टाउन में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने बताया कि धर्म रक्षित रक्षितः धर्म ही ऐसा एक साधन है जो सम्पूर्ण जीवों की रक्षा है करते हुए अभयदान दे सकता है यदि संसार से धर्म को दूर कर दिया जाये तो संसार से शान्ती, निर्भयता, समृद्धि चली जायेगी। धर्म निशस्त्र है फिर भी धर्म कहता है स्वयं भी सुरक्षित रहो और दूसरों की भी रक्षा करो।
जो आत्मा अधर्म की ओर कदम बढ़ाती है वे स्वयं भी भयभीत रहती है और दूसरों को भी त्रस्त करती है जो धर्म को धर्म के सिद्धान्त को जीवन में धारण कर लेता है उसका मरन भी सुखद हो जाता है जन्म मरण के परिभ्रमण से मुक्ति दिलाने में धर्म ही सक्षम है। नरक में धर्म न होने के नाते नारकी प्रतिपल भयभीत रहते है। एक नारकी दूसरे नारकी को कष्ट देने के लिए मारकाट करते रहते हैं नरक में अत्यन्त वेदना पाते है और वेदना से बचने के लिए वे निरन्तर भागो – 2 कहते रहते है। संसार में मनुष्य लोक में धर्म है और धर्म को अपना कर धर्मी जीव सबकी सुरक्षा कर सकता है अधर्मी जीव पशुतुल्य है। धर्मी जीव ही मनुष्य कहलाता है। ज्ञानीजन कहते है धर्म हमारी रक्षा करता है इसलिए जीवन में धर्म आवश्यक है। आंशिक रूप से धर्म करने भी वाला अनन्त दुःखो से बच जाता है तो पूर्ण रूप से पापों का त्याग करने और
धर्म आचरण करनेवाला तो परिपूर्ण रूप से सुखी हो जाता है। धर्म रहित जीवन कल्याणकारी, मंगलकारी नहीं बन सकता। मंगल किसी वस्तु या पदार्थ से नही धर्म से ही मंगल होता है। भौतिक मंगल लौकिक मंगल बाद में अमंगल हो जाते है। जैन आगम में विष्णुवर्धन मुनि का वर्णन आता है। कहते है कि विष्णु वर्धन मुनि उत्कृष्ट संयम के आराधक थे।
उज्जैन नगरी में अनेक प्रकार की धर्म प्रभावना हुई। आज भी ये धर्म नगरी है। इस नगरी में श्री वर्मा नामक राजा राज करता था। राजा का मंत्री नमूची एकान्त रूप से मिथ्यात्वी था। जब उसने सुभटाचार्य को लोगो के द्वारा, वन्दन नमन देखे तो मंत्री जलन से पीड़ित हो गया तो वह जिनेश्वर प्ररुपित धर्म की जिन्दा करने लगा परन्तु आचार्य ने जब देखा कि मेरे कुछ कहने से समाज मे क्लेश होगा तो वे समभाव में मौन हो गये परन्तु आचार्य के लघु मुनि ने मंत्री को वाद विवाद के लिए ललकारा और मंत्री को परास्त कर दिया मंत्री को सभी धिक्कारने लगे। जिससे नमूचि ने मन में धार लिया मै इस मुनि को छोडुगां नही । भगवान कहते है जो निन्दा व प्रशंसा में समभाव रह ले उनके कर्म बन्ध नहीं होता मंत्री ने श्रद्धा भक्ति के आभाव में मुनि की हत्या करने की सोची क्रूर भावों के साथ मंत्री तलवार लेकर वध करने आया। कहते है अधर्मी को धर्म अपने वश में कर लेता है।
मुनिराजों की सेवा मनुष्य, देवता व तिर्यंच सभी करते है। धर्म के प्रभाव से मंत्री का शरीर स्तमभित हो गया। सूर्योदय होने पर लोगो ने नमूचि मंत्री को देखा उसे धिक्कारने लगे। पर मुनिराज फिर भी शान्त थे। धर्म ध्यान में लीन थे। नमूचि वहाँ से उस नगरी से भाग कर हस्तिनापुर पहुंच गया और मंत्री पद पर आसीन हुआ। फिर भी उसके मन में जैन मुनि के लिए द्वेष था। उधर आचार्य को आत्म साधना से कई लब्धियां प्राप्त हो गई थी। आचार्य चार्तुमास के लिए हस्तिनापुर पहुँचे। लघु मुनि ने आत्म साधना के लिए सुमेरु पर्वत जाने के लिए आज्ञा मांगी । आचार्य ने आज्ञा प्रदान कर दी। चातुर्मास काल आचार्य के समक्ष लोगों के वन्दन नमन की भीड़ को देख अमुचि में बदले की भावना फिर से जाग गयी। नमुचि ये जानता था कि राजा कें
पास उसका एक वचन सुरक्षित है उसने उस समय वो वचन राजा से इस प्रकार मांगा कि सात दिन के लिए चकवर्ती पद प्रदान किजिए। राजा ने वचनबद्ध होने के कारण उसे पद प्रदान किया। अति विश्वास व्यक्ति को धोखा ही देता है। “अति सर्वत्र वर्जयेते” ज्ञानी जन कहते है अति किसी बात की अच्छी नही। नमूचि ने चकवर्ती बनते ही ये ऐलान करवा दिया कि जैन मुनि पाखण्डी है इन्हे सात दिन में छह खण्ड से बाहर करवा दो अन्यथा धानी में पील दिया जायेगा। तब लघु मुनि ने कहा इस संकट से हमे विष्णुकुमार मुनि ही बचा सकते है। तब एक लघु मुनि आचार्य की आज्ञा से आकाश मार्ग से विष्णु कुमार मुनि के पास पहुँचे।
उन्हें सकंट के बारे में बताया। तब विष्णु कुमार ने हस्तिनापुर आ कर राज दरबार मे नमुचि को समझाना प्रारम्भ किया। परन्तु नमुचि नही माना। और नमुचि ने कहा तुम्हे 6 दिन के लिए तीन पैर की जमीन देता हूँ फिर सातवें दिन तुम्हे भी जाना पड़ेगा विष्णुकुमार ने अपनी वैक्रिय लब्धि से सुमेरु पर्वत जितना अपना शरीर बढ़ा लिया फिर एक पैर से जम्बू द्वीप, एक पैर से सुमेरु पर्वत नाप लिया और तो तीसरा पैर नमुत्ति पर रखा तो नमुति क्षमा मांगने लगा। ये देख नभूति के परिवार की महिलाओं ने विष्णुकुमार के हाथ में रक्षा सूत्र बांधी तब से भारत में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है। जैनो में जो भी त्यौहार मनाये जाते है उसमें जीव हिसां का निषेध होता है।
कार्यकारिणी सदस्य ज्ञानचंद कोठारी ने संचालन करते हुए बताया कि आज नार्थ टाउन में गुरुदेव के सान्निध्य में लौकिक पर्व को आध्यात्मिक रूप से मनाया जाएगा। लता बेताला व ममता कोठारी ने स्वरचित कविता गाई । कार्याध्यक्ष पदमचंद खीचा ने रक्षाबंधन पर उद्बबोधन दीया। तत्पश्चात करीब 50 से भी अधिक बहनों ने अपने भाईयों की कलाई पर राखी बांधी। सभी बहनों को गुरु भक्त परिवार की ओर से चूनरी प्रदान कि गई। तीन सर्वोत्तम पोशाक व सुंदर थाली सजावट पुरस्कार दिए गये। अंत में गुरुदेव ने रक्षाबंधन पर विशेष मंगल पाठ सुनाया।