कल की कहानी को आगे बढाते हुए स्वर्णश्रीजी मारसाब ने कहा अदिनशत्रू राजा बडे ही प्रजावत्सल थे| हजारो रानियों में धारणीदेवी ही प्रमुख थी| पट्टरानी थी| पर क्यों? गुणों के आधार पर थी| इतना बडा परिवार संभाला| आसान नहीं होती है ये बातें|
आगम के वर्णन द्वारा मारसाब ने संयुक्त परिवार का सटीक वर्णन, महत्व बताया| वैसे ही वर्तमान में पारिवारिक परिस्थिती से अवगत कराते हुए, परिवार में नारी का महत्व बताया| नारी ही है जो परिवार जोड-तोड सकती है| आज की स्त्री को स्पर्धा करनी हो तो अतीत के स्त्रियों से करनी चाहिए ऐसा मारसाब कहा| ताकि आज का परिवार सुखी हो सकता है|
नारीयों का काम भी पुरुषों से आगे है यह समझाते हुए मोक्ष में जाने वाली, दीक्षा में, धर्मस्थान में उपस्थिती में सब में नारी आगे ही है ऐसा दिखा दिया| अंत में नारी *श्राविका* *तीर्थस्वरूपा* *रत्नकुक्षधारी* है कहकर नारी का महत्व बताकर अपने शब्दों को विराम दिया|
*परमपूज्य सुमन प्रभाजी म. सा.*
मारसाब नारी के महत्व को आगे बढते हुए 16 सतियों का आदर्श सामने रखा| नारियाॅं दोहरा दाईत्व निभाती है, मायका और ससुराल|
कल की कहानी को आगे बढते हुए कहा राणी गर्भवती होती है और गर्भसंस्कार जो 16 संस्कारों में से एक है, उसे अपनाती है| इसी बात को नजर में रखते हुए गर्भसंस्कार का महत्व बताया| मारसाब ने कहा गर्भ यह एक प्रयोगशाला है| जैसे प्रयोगशाला में प्रयोग होते है वैसे ही गर्भ में संस्कार करना, प्रयोग करना यह माता करती है| वह माॅ के हाथ में है| इसका उदाहरण देते समय नेपोलियन बोनापार्ट की माॅं का उदाहरण दिया|
जीव 3 संस्कार लेकर जन्मलेता है| 1.*पूर्वसंस्कार* है| पूर्वसंस्कार से जो जीव जन्म लेता है उसमें माँ की कहीं गलती नहीं होती| 2.*गर्भसंस्कार* जो माॅं के हाथों में है| 3 *बाह्यसंस्कार*. आज के बच्चों की परिस्थिती पर मारसाब ने मन की विषण्णता प्रकट करके सभी को (श्राविकाओंको) भी संस्कार के लिए अंतकरण से प्रेरित किया|
मन ही मन उन्होंने अपने अंतर्मन से, अंतर हृदय से बच्चों को संस्कारीत करने के प्रति बहनों को सीख दी और इसके लिये महाभारत के चक्रव्यूह-भेदन का अभिमन्यू का उदाहरण देते हुए कहा की माॅं की छोटी सी गलती की वजह से अगर जान जाती है तो आजकल हम कितनी बडी बडी गलतियाॅं करते है इस पर ध्यान खिंचा|और इससे बचने के लिए धर्मस्थान में आने का मार्ग दिखाया|
जैन श्रावक संघ, राजगुरुनगर