चेन्नई. साहुकारपेट स्थित जैन भवन में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी सिद्धिसुधा ने रविवार को कहा तपने के बाद ही मनुष्य की कीमत बढ़ती है। छाछ बनाना मुश्किल नहीं होता लेकिन घी बनाना बहुत ही मुश्किल होता है। घी बनाने के लिए दूध को तपना पड़ता है।
बाद में छाछ की तुलना में घी की कीमत बहुत ज्यादा होती है। उसी प्रकार मनुष्य अपने आप को धर्म और कर्म के कार्यो में तपा कर आत्मा का कल्याण करेगा तो उसकी कीमत अपने स्वत: बढ़ जाएगी। उन्होंने कहा संतों के सानिध्य में आकर जिनवाणी का श्रवण करने से मनुष्य के जीवन में बदलाव आएगा।
चार माह के चातुर्मास में अगर मनुष्य सच्चे मन से जीवन में बदलाव की कोशिश करेगा तो जीवन अपने आप ही बदल जाएगा। नहीं तो पहले भी बहुत साधु संतों का सानिध्य मिला था और आगे भी मिलेगा लेनिक बदलाव नही हो पाएगा। साध्वी सुविधि ने कहा वर्तमान में मनुष्य ईश्वर रूपी आत्मा के बजाय नश्वर शरीर को सजाने की कोशिश करता है।
धर्म के कार्यो के लिए शरीर का स्वस्थ्य रहना बहुत जरूरी है लेकिन उसे सुंदर बनाने के बजाय अगर मनुष्य अपने अंतर्मन को सुंदर बनाने की कोशिश करे तो जीवन में बदलाव संभव है। मनुष्य की आत्मा ही उसकी ईश्वर है तो उसे नश्वर को चाहने और सजाने के बजाय ईश्वर को चाहना चाहिए।
उन्होंने कहा कि ईश्वर की ताकत सबसे अलग होती है एक बार मनुष्य अपनी आत्मा को सजाकर देखे जीवन में अपने आप ही बदलाव आने लगेगा। संसार तो असार है लेकिन आत्मा से किया गया धर्म ही सार होता है। जिस कार्य में मनुष्य को सार न मिले उसे करने का कोई मतलब नहीं निकलता।
उन्होंने कहा बहुत तपस्या के बाद यह मनुष्य भव मिला है इसलिए ऊपरी शरीर को सजाने के बजाय आत्मा को सजा कर बदलाव कर लेना चाहिए। आगामी मंगलवार को गुरु पूजन अनुष्ठान होगा। इस मौके पर संघ के अध्यक्ष आनंदमल छल्लाणी समेत अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे। संचालन कोषाध्यक्ष गौतम दुगड़ ने किया।