श्री जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में जयधुरंधर मुनि के सानिध्य में नूतन वर्ष के पावन प्रसंग पर महामंगलिक का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत जय जाप से हुई।
जयपुरंदर मुनि ने उत्तराध्ययन सूत्र के 36 वें अध्ययन का मूल वांचन किया जिसे सभी श्रद्धालुओं ने श्रद्धा भक्ति पूर्वक खड़े-खड़े श्रवण करते हुए भगवान महावीर को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर श्रद्धालुओं को आशीर्वचन देते हुए मुनि ने कहा वीर निर्वाण संवत की अपेक्षा कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा को नववर्ष की शुरुआत होती है। इस नूतन वर्ष को मंगलकारी बनाने के लिए साधक को धर्म आराधना सहित आध्यात्मिक क्षेत्र में उत्तरोत्तर वृद्धि करनी चाहिए। धर्म आराधना से स्वतः ही ॠद्धि, सिद्धि और समृद्धि की प्राप्ति हो सकती है।
हर व्यक्ति शालीभद्र जैसी ॠद्धि, गौतम स्वामी जैसी लब्धि, अभयकुमार जैसी बुद्धि चाहता है लेकिन उसके लिए उसे उन महापुरुषों की तरह ही आदर्श जीवन जीना होगा। भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात उनके द्वारा प्ररुपित उपदेशों को हृदयंगम करते हुए उनका अनुसरण करना ही सच्ची श्रद्धांजलि है।
महापुरुषों का जीवन सबके लिए पथ प्रदर्शक होता है। जिस पर देव, गुरु, धर्म की कृपा बरसती है वह अंधेरे में भी ठोकर नहीं खा सकता है। नव वर्ष में एक नए उमंग, जोश, उत्साह के साथ नए जीवन की शुरुआत करनी चाहिए। इससे पूर्व दीपावली के अवसर पर सामूहिक तेला करने वाले 85 तपस्वीयों का संघ की ओर से पारना करवाया गया।
दीपावली के संध्या में 55 श्रावक- श्राविकाओं ने पौषध व्रत की आराधना की। महामांगलिक के पूर्व महावीर अष्टक स्तोत्र एवं गौतम रास का भी उच्चारण किया गया। अंत में तेले तप की मौन साधना के साथ जयधुरंधर मुनि ने महामांगलिक प्रदान की। जयकलश मुनि एवं समणी श्रीनिधि, श्रुतनिधि, सुधननिधि ने भी मंगल पाठ सुनाया।