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नववर्ष पर जयतिलक मुनिजी द्वारा महामंगलिक 

नववर्ष पर जयतिलक मुनिजी द्वारा महामंगलिक 

नार्थ टाउन में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने कहा कि भगवान महावीर तीर्थकंर थे लेकिन जन्म के पहले कर्म उदय थे । 82 दिन देवानंदा की कुक्षी में थे। कर्म क्षीण होते ही देवलोक के देवता हरिणगमेषी देव ने गर्भ को बदल दिया त्रिशला माता की कुक्षी ! एक माँ का दुःख एक माता को सुख । कोई भी माता की कुक्षी से जन्मे तो तीर्थकर ही बनेंगे। बाल्य काल में उनकी ज्ञान कला इतनी थी कि गर्भावस्था में भी माँ को तकलीफ न हो, मेरे हलन- चलन से माँ को पीडा न हो इसलिए स्थिर हो गये। पाँचवे आरे में भी शरीर स्थिर होता है। माता पिता को दुख न हो तब तक संयम न लिया। जब तक केवल दर्शन केवल ज्ञान प्राप्त न हो तो मन वचन काया में स्थिर रहा और 12-1 /2 बर्ष तक पालन किया। पहली देशना खाली गयी और दूसरी देशना में 4400 दीक्षा हुई।

केवल ज्ञान के बाद 30 साल संयम पाला। अनेक उपसर्ग आये तो भी संयम से पाला। उनके पहले गणधर गौतम स्वामी को संचय उपस्थित हो गया की मुझे केवल ज्ञान होगा कि नही तब भगवान ने कहा मेरे प्रति जो मोह है उसे छोड़कर ही आपको अगर मुझे केवल ज्ञान होगा वह मुझे नहीं चाहिए । आपके सानिध्य में मुझे जो खुशी मिलती इसके लिए मुझे केवलज्ञान नही चाहिए । मोह मैं नहीं छोड सकता हूँ। जहाँ वासल्य रहता है वहाँ प्रेम रहता है, इसलिए गौतम स्वामी को भगवान के प्रति प्रशस्त राग था । अंत जब भगवान का समय आ गया तब भगवान ने सोचा कि गौतम गणधर आर्त ध्यान करेगा तो कर्म बंधेगा।

तो गौतम गणधर को दूर भेज दिया। देवशर्मा को प्रतिबोध देने भेज दिया पीछे प्रभु का निर्वाण हो गया। देश के राजा उपस्थित थे देवता भी उपस्थित थे देवता ने रत्नों के दीपक जलाये ! केवलज्ञान सूर्य का अस्त हो गया तो दीपक के प्रकाश से केवलज्ञान को प्रकाशमय बनाया। यह हमारे लिए बड़ा पर्व है। भगवान का निर्वाण कल्याणक है। इस समय ज्ञान, धर्म ध्यान की निर्जरा की जाती है। 18 देश के राजा ने पोषध किया।

आत्मा का ध्यान किया तथा तेला का तप करके आत्मा का कल्याण करते है पौषध यानि – आत्मा का पोषध करना। आत्मा का ख्याल रखना, तेला करके आत्मा का चिंतन करना ! हमारा इतना बड़ा पर्व है पटाखे फोड़ाने से छ : काया की जीवों की हिंसा होती है। आप तेला नही कर सकते हैं, तो उपवास भी कर सकते हैं। गौतम गणधर को मालूम हो गया देव दुदुम्बी भी बजने लगी। वो वहाँ दोडकर आ गये और बोले मुझे इतनी दूर, क्यों भेजा । बादल की तरह रोते हैं अशुभ भाव शुभ में बदल गये। मन में विचार आया में किसलिए रो रहा हूं आत्म ध्यान रोद्र ध्यान छूटा और उनको केवलज्ञान हो गया!

आज दो दो केवल ज्ञान निर्वाह है भगवान का पाट आचार्य सुधर्मा स्वामी को बनाये ! आज हमारा नया वर्ष है वीर संवत है। आज से संसार की शुरुवात है मंगलमय पाठ और क्लेश कारी प्रकृति को दूर करो। नववर्ष पर जयतिलक मुनिजी ने महामंगलिक सुनाया।

अध्यक्ष अशोक कोठारी ने संचालन करते हुए आगामी कार्यक्रमों की जानकारी दी।

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