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नवपद की आराधना जन्म-जरा-मृत्यु के महाभयंकर रोग को मिटाकर अक्षय सुख प्रदान करती है: विरागमुनि

नवपद की आराधना जन्म-जरा-मृत्यु के महाभयंकर रोग को मिटाकर अक्षय सुख प्रदान करती है: विरागमुनि

बाड़मेर। स्थानीय आराधना भवन में श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ चातुर्मास व्यवस्था समिति के तत्वावधान में आयोजित नवपद ओली आराधना के प्रथम दिन शनिवार को प्रवचन का आयोजन हुआ। इस अवसर पर जैन मुनि श्री विरागमुनिजी महाराज ने कहा कि नवपद की आराधना जन्म-जरा-मृत्यु के महाभयंकर रोग को मिटाकर अक्षय सुख प्रदान करती है तथा आराधना से ही बाह्य-अभ्यंतर सुख की प्राप्ति होती है। नवपद की आराधना करके भूतकाल में असंख्य आत्माएं मोक्ष में गई, वर्तमान में जा रही है और भविष्य में जायेगी।
     

मुनिश्री ने कहा कि दिपावली, रक्षाबंधन, पर्युषण आदि पर्व साल में एक बार आते है लेकिन शाश्वत नवपद ओलीजी साल में दो बार चैत्र मास व आसोज मास में आती है। अरिहंत के बिना जैन जगत संभव ही नही है। अरिहंत की वास्तविक भक्ति देखनी है तो उनके प्रति पूर्ण समर्पण जरूरी है। अरिंहत के बिना नवपद के बाकी आठ पद भी संभव नही है। अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप की साधना ही नवपद ओली आराधना का सार है। यह आराधना आत्मिक एवं शारीरिक आरोग्य बढ़ाती है, कर्मो की निर्जरा तथा शारीरिक व्याधि को दूर करती है।

उन्होंने कहा कि श्री सिद्धचक्र यंत्र नवपद की उपासना का श्रेष्ठ माध्यम है। इस यंत्र में पंचपरमेष्ठी, चैबीस यक्ष-यक्षिणी, सोलह विद्या-देवियां, अट्ठाइस लब्धियां, नवनिधि, अष्टसिद्धि, अष्टमंगल व नवग्रह का समावेश ज्ञानियों की ओर से किया गया है। इस यंत्र की पूजा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। जैन मुनि ने कहा कि नवपद ओली का तप आयंबिल से किया जाता है। बिना तेल-घी मिर्च-मसालों का मात्र उबला हुआ आहार आयंबिल में लिया जाता है, जो कि शरीर के आरोग्य का विशेष तंत्र है।

इतिहास प्रसिद्ध राजकुमार श्रीपाल एवं मयणासुंदरी ने श्री सिद्धचक्र एवं नवपद की आराधना से जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति तथा यश कीर्ति प्रतिष्ठा को पाया था। नवपद की आराधना से रोग, कष्ट मिट जाते हैं। मैना सुंदरी की नवपद आराधना की शक्ति से पति सहित 700 कौडियों के रोग स्वस्थ हो गए थे। गुरु के वचनों के प्रति सच्ची श्रद्धा हो तो आत्मा का कल्याण होता है। उन्होंने कहा कि सम्यक श्रद्धा जगी नहीं है चिंतन का विषय है परमात्मा को धन्यवाद देना चाहिए।

प्रभु हमें संबल दे कि जीवन में किसी प्रकार का घिनौना कार्य लोभ तृष्णा नहीं करें। जब तक गुण नही हो तब तक की गई साधना आराधना मात्र संसारवृद्धि का कारण बनती है। जीवन में अनेक आनंद है सम्यक चाबी गुरु के पास ही होती है। गुरु के वचनों पर श्रद्धा होनी चाहिए। भोग के प्रति हर व्यक्ति आसक्त रहता है। गुरु और जिनवाणी के प्रति सम्यक श्रद्धा बहुत कम होती है। इस अवसर पर सैकड़ों साधकों ने नवपद ओली की आराधना प्रारंभ की।

 

 खरतरगच्छ चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष प्रकाशचंद संखलेचा व मिडिया प्रभारी चन्द्रप्रकाश बी. छाजेड़ ने बताया कि शनिवार से शाश्वत नवपदजी की ओलीजी तप की आराधना प्रारम्भ हुई जिसमें सैकड़ों की संख्या में आराधकों ने नवपदजी की ओली प्रारम्भ की यह आराधना जप तक अनुष्ठान के साथ 13 अक्टूबर को सम्पूर्ण होगी। इस अवधि में आराधक को प्रतिदिन प्रतिक्रमण, सामायिक, स्नात्र पूजा, प्रवचन, देववंदन, आयंबिल, स्वाध्याय, सायं प्रतिक्रमण रात्रि भक्ति, माला, जाप, प्रदक्षिणा, साथिया आदि क्रियाएं सम्पन्न करनी होती है।

जैन शास्त्रों में उल्लेख है कि हजारों वर्ष पूर्व महाराजा श्रीपाल व मैना सुंदरी ने उज्जयिनी में तप आराधना की थी, जिससे उनका कुष्ठ रोग दूर हुआ व उन्हें अपना खोया हुआ राज्य वापस मिला था। नवपद ओलीजी करवाने का सम्पूर्ण लाभ सुआदेवी धर्मपत्नी शंकरलाल मालू परिवार लालजी की डूंगरी वालों ने लिया है।

ऐसे होता है ओली तपः ओली तप में आराधक एक बैठक पर एक समय भोजन करता है। पानी उबला व भोजन रुखा अर्थात तेल, मिर्च-मसाले, नमक, घी, दूध, शक्कर-गुड़ आदि से रहित होता है। आराधक प्रातः भक्तामर पाठ, सामायिक, पूजन, प्रवचन श्रवण तथा दोपहर को देववंदन व संध्या प्रतिक्रमण तथा निर्धारित माला जाप करते हैं।

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