बेंगलुरु। आचार्यश्री देवेंद्रसागरसूरीश्वरजी की शुभ निश्रा में जैन समाज के त्यौहार नवपद ओली की आराधना शनिवार से प्रारम्भ हुई, जिसमें बड़ी संख्या में आराधक सम्मिलित हुए। नवपद ओली का लाभ कुमारी डोली रणजीत गादिया परिवार ने लिया।
नवपद के प्रथम दिन अपने प्रवचन में आचार्यश्री ने कहा की जैन समुदाय में प्रत्येक वर्ष दो बार नवपद ओली का महोत्सव मनाया जाता है जो नौ दिनों तक रहता है। नवपद के प्रथम दिन अरिहंत परमात्मा की विशेष स्तुति स्तवना की जाती है। उन्होंने कहा कि अरिहंत का अर्थ है वह, जिसने घृणा, क्रोध, अहंकार और मोह जैसे आंतरिक शत्रुओं को जीत लिया हो। यह सिद्धचक्र के मध्य में स्थित है।
अरिहंत को प्रकृति की सर्वोच्च शक्ति बताते हुए उन्होंने कहा कि वह एक भौतिक शरीर के साथ ब्रह्मांड में सबसे शुद्ध आत्मा होता है। अरि का अर्थ है ‘शत्रु’ और हन्त का अर्थ है ‘नाश करने वाला’।
यहां शत्रु आंतरिक हैं और ये हैं – राग (मोह) और द्वेष (घृणा)। इसलिए अरिहंत सांसारिक राग और द्वेष से मुक्त है और वीतराग के रूप में जाना जाता है। वह संपूर्ण संतुलन में एक भौतिक शरीर के साथ संसार में रहता है। वह संपूर्ण ज्ञान वाले सार्वभौमिक पर्यवेक्षक भी हैं जो ‘केवल ज्ञान’ है।
अरिहंत तीर्थ को स्थापित करता है, इसलिए उसे तीर्थंकर भी कहा जाता है। जैन अनुयायी नवप्रद ओली के प्रथम दिन शुक्ला सप्तमी को ‘अरिहंत पद’ की पूजा करते हैं। वे केवल उबले हुए चावल खाकर आयंबिल तप करते हैं। अरिहंत का रंग सफेद है, इसलिए इस दिन आयंबिल के लिए चुना गया अनाज सफेद है, अर्थात चावल। वे दिन में अरिहंत की पूजा और ध्यान करते हैं।