श्री जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने नवपद ओली तप आराधना के दौरान कहा कि हर जीव का चरम और परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति करना होता है। उस साध्य तक पहुंचने के लिए साधना करना नितांत आवश्यक है।
भगवान महावीर ने 12 1/2 वर्ष तक कठोर साधना करते हुए परमात्मा पद प्राप्त किया। साधना से ही सिद्धि प्राप्त होती है। कोई भी धर्म क्रिया निष्फल नहीं होती है, लेकिन साधक को फल की प्राप्ति के लिए साधना नहीं करनी चाहिए। फल तो स्वत: ही प्राप्त हो जाता है।
उन्होंने नवपद आराधना का महत्व बताते हुए कहा कि अरिहंत, सिद्ध,आचार्य, उपाध्याय, साधु , ज्ञान , दर्शन, चरित्र तप इन पदों पर सम्यक् श्रद्धा, आस्था एवं समर्पण रखने से सभी संकट दूर हो जाते हैं। साधना के अंतर्गत इष्ट के स्मरण के साथ तप और जप जरूरी होता है। आसोज मास का यह शुक्ल पक्ष शक्ति की आराधना का अवसर होता है।
यही कारण है कि नवरात्र और नवपद ओली का विशेष महत्व होता है। इन 9 दिनों में आयंबिल तप करने से शारीरिक एवं आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है। तप के समान कोई दवा नहीं होती। असाध्य रोग भी तप के प्रभाव से दूर हो जाते हैं। आयंबिल तप करते समय रुखा- सुखा एवं लुखा आहार करने से स्वाद पर विजय प्राप्त किया जा सकता है।
स्वाद पर विजय प्राप्त करना स्वयं पर विजय प्राप्त करने के समान है। आयंबिल से अनशन, ऊनोदरी रसपरित्याग तप स्वतः ही हो जाते हैं। इस समय में ऋतु के अनुसार शरीर में भी परिवर्तन हो जाता है। आयंबिल करने से भव – भव के संचित कर्म क्षय हो जाते हैं। आत्मा को तेजोमय बनाने में तप का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
इस अवसर पर जयकलश मुनि ने श्रीपाल चरित्र का वांचन किया। नवपद आयंबिल ओली आराधना के अंतर्गत 55 श्रावक- श्राविकाओं ने पूरे विधि विधान के साथ आयंबिल तप की आराधना की। कोयंबतूर स्थानकवासी जैन संघ के अध्यक्ष श्रीपाल कांकरिया ने मुनिवृंद के समक्ष आगामी चातुर्मास की विनती प्रस्तुत की। सभा के अंत में आई चुकी बाई कंवर बोकड़िया को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।