साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने कहा नवकार में प्रवेश पाने वाला अष्टकर्मों को तोड़ देता है।
नवकार का ध्यान करने पर माया से मुक्ति व सरलता से संयुक्ति होती है। नवकार में पांच बार ‘नमो’ आया है जो हमें अहंकार से मुक्त होने का संदेश देता है। अहंकार का भार ही हमें ऊपर उठने नहीं देता।
हम अपने ही भार से दबे रहते हैं। आत्मा अहंकार के कारण ही परमात्मा से दूर हो जाती है। परमात्मा की ओर केवल वे ही गति कर पाते हैं, जो सर्वप्रकार से स्वयं भारमुक्त हो जाते हैं। परमात्मा के मंदिर में प्रवेश करने का अधिकारी वही है, जो स्वयं की अहंता के भार से मुक्त हो गया है।
मनुष्य का शरीर तो उस मिट्टी के दीये की तरह है, जो मिट्टी से बना है और अंत में मिट्टी में ही विलीन हो जाता है और आत्मा उस दीपक की ज्योति की तरह है, जो सदैव ऊपर की ओर उठना व परम तत्व परमात्मा को पाना चाहती है। नवकार के प्रथम पांच पदों के कुल 35 अक्षर हैं।
3 को 5 से गुणित करने पर 15 होते हैं, अर्थात् 5 भरत क्षेत्र, 5 ऐरवत क्षेत्र और 5 महाविदेह क्षेत्र, इन 15 कर्मभूमि क्षेत्र में हमें नवकार की प्राप्ति होती है। 3 और 5 का योग करें तो 8 होते हैं। नवकार हमें आठ प्रकार के कर्मों को तोडऩे की प्रेरणा देता है।
मुनि ने ‘मंगलाणं च सव्वेसिं’ पद के वर्णानुसार मंडपाचल, गंगाणी, लाखणी, नंदुरी,चम्पापुरी, समली विहार, वेलार, सिंहपुरी आदि तीर्थों की भाव यात्रा करवाई। रविवार को विभिन्न मुद्राओं के साथ नवकार भाष्य जप अनुष्ठान होगा।