जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने नवकार मंत्र के अक्षरों को ब्रह्म स्वरूप बतलाते हुए कहा कि जिस प्रकार ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का निर्माण होता है उसी प्रकार शब्द रूपी मंत्राक्षरों से हमारी जीवन यात्रा सुखद शान्त मनोकामना पूर्ण होती है! नमो सिद्धांनम दूसरे पद की महिमा अनंत अगमय वर्नातीत है! सिद्ध अर्थात वे आत्माए जो सम्पूर्ण कर्मों का संसार का राग द्वेष का क्षय करके मोक्ष पद को प्राप्त कर चुकी है जो जगत विजेता है! संसार के मार्ग दर्शक है! परोक्ष रूप से समस्त जीवों के कल्याण कर्ता है! हमें जो भी धर्म के ज्ञान दर्शन चारित्र के गुण प्राप्त हुए है वे अरिहंत सिद्ध की कृपा से मिले है!
हर इन्सान सुख का इच्छुक होता है जीवन भर सुख को पाने के लिए रातदिन एक कर देता है इस आपधापी दुनिया मे स्वयं का आपा धापा भूल जाता है! दुखों को पैदा करके उन पदार्थों से सुख की चाहना रखता है! पेट्रोल से आग बुझाने का कार्य कर्ता है!उल्टे रास्ते चलकर लक्ष्य तक पहुंचना चाहता है जो कभी भी सम्भव नहीं हो पाता, सिद्धत्व के लिए बाहरी की भौतिकता का त्याग करना आवश्यक है! भीतर की वासनाएं समाप्त करके ही भीतर की वासनाएं समाप्त कर के ही वास्तविक शान्ति सुख को प्राप्त कर सकता है!
सभा मे साहित्यकार सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा नवकार महामंत्र के दूसरे पद की साधना विधिपूर्वक कराई गई! समाज द्वारा दिल्ली से पधारी वैरागन बालिका मणि जैन का हार्दिक स्वागत सम्पन्न कराया गया महिला मंडल व तमाम श्रद्धांलु शराविका व श्रावक जनों ने अनुमोदना का लाभ लिया, महामंत्री उमेश जैन द्वारा विविध सूचनाएं प्रदान की गई।