बेंगलुरु। आचार्यश्री देवेंद्रसागरसूरीश्वरजी की शुभ निश्रा में प्रातः काल में नए साल के मांगलिक का आयोजन हुआ। जिसमें आचार्यश्री ने नव वर्ष का आशीर्वचन देते हुए कहा कि अधिकांश लोगों के लिए जरूरी है कि कुछ तो ऐसे नए की शुरूआत करें कि पूरा साल अपने पिछले साल की तुलना में नया बनकर हमारे जीवन में कुछ नया जोड़े अन्यथा तो यह भी साल, जो अभी तक नया नजर आ रहा है, कुछ समय बाद पुराना पड़कर पिछले जैसा ही हो जाएगा।
वस्तुतः नये वर्ष के स्वागत का अर्थ है ; एक नई चेतना, एक नया भाव, एक नया संकल्प, कुछ ऐसा नया करने की प्रतिज्ञा, जो अब तक नहीं किया और कुछ ऐसा छोड़ने का भाव कि जिसके साथ चलना मुश्किल हो गया है। ऐसा करके ही हम नए वर्ष का सच्चे अर्थों में स्वागत कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि सच तो यही है कि नया वर्ष, नया संकल्प लेने का एक अवसर होता है, एक ऐसा संकल्प, जिसे हम लगातार साल भर तक निभाते रहें और जब किसी संकल्प को लगातार साल भर तक निभाया जाता है, तो वही हमारी आदत बन जाती है। आचार्य श्रीजी ने कहा कि यही आदत हममें कुछ इस तरह घुल-मिल जाती है कि वही हमारा व्यक्तित्व बन जाता है।
इसलिए जरूरी है कि हम इस अवसर पर कोई एक संकल्प लें। चाहे वह संकल्प कितना भी छोटा क्यों न हो। हम सभी अनेक प्रकार की कमजोरियों से भरे हुए होते हैं। यह दावा करना बिल्कुल गलत होगा कि ‘मेरे अन्दर कोई अवगुण नहीं है।
‘ मुझे लगता है कि नये वर्ष में हमें अपने संकल्पों में एक संकल्प यह भी जोड़ लेना चाहिए कि ‘मैं अपने किसी एक अवगुण विशेष की समाप्त करूँगा।‘ नए का अर्थ ही है- सब कुछ नया।
जिस प्रकार साँप अपनी केंचुली छोड़कर एक नया आवरण धारण करता है, बिल्कुल उसी तरह नये साल में हमें भी अपनी जड़-मानसिकता को छोड़कर नई मानसिकता अपनानी चाहिए।