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नम्रता अंदर में रहे अहंकार का नाश करती है- उपाध्याय युगप्रभविजयजी म.सा.

नम्रता अंदर में रहे अहंकार का नाश करती है- उपाध्याय युगप्रभविजयजी म.सा.

किलपॉक स्थित एससी शाह भवन में विराजित उपाध्यायश्री युगप्रभविजयजी ने प्रवचन में कहा कि अहंकार सबसे ख़तरनाक तत्व है। अच्छे अच्छे कार्यों को अटकाने का कार्य अहंकार करता है। नम्रता अंदर में रहे अहंकार का नाश करती है। अगर आपको कोई पूछता है तो मात्र ज्ञान को प्रदर्शन नहीं करना है। ज्ञान कोई प्रदर्शन करने की वस्तु नहीं है। ज्ञान आने पर अहम आ सकता है। जहां ज्ञान होगा वहां मान नहीं होगा, जहां मान होगा वहां ज्ञान नहीं होगा।

उन्होंने कहा कि धर्म के अंदर ज्ञान से प्रवेश होता है और ज्ञान के अंदर नम्रता से प्रवेश होता है। ज्ञान के कारण संघ के कई कार्य अटक जाते हैं, उसका कारण मात्र अहंकार है। शास्त्रों में लिखा है जिसका नाम है, उसका नाश है। अपनी लाइन बड़ी हो तो दूसरों की लाइन छोटी नहीं करनी चाहिए। व्यक्ति दूसरों को ठोकर खाते हुए देखने पर भी नहीं सुधरता। दूसरों का नाम मिटाते समय यह सोचना मेरा नाम का भी एक दिन नाश होगा। धर्मार्जन के क्षेत्र में हम पीढ़ियों के नाम का सोचते हैं। नाम के कारण अच्छे होने वाले कार्य अटक जाते हैं।

उन्होंने कहा कि धर्म करने के लिए नम्रता की आवश्यकता है। जो ज्ञान या सामग्री आपको प्राप्त हुई है, उसका प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। जहां नाम की तकलीफ आएगी, वहां अहंकार उत्पन्न होगा। अहंकार धर्म में प्रतिबंधक बनता है। जिस चीज से अहंकार की पुष्टि होती है वहां आंख बंद करके खर्च करते हो। अहंकार हर जगह तकलीफ देता है। हमारी शक्ति अहंकार के कारण अटक जाती है। मरीचि के भव में महावीर को प्रथमत्व का अहंकार था। अहंकार को कर्मसत्ता पकड़ लेती है। तीर्थंकर परमात्मा को भी 27 भवों तक भुगतना पड़ा, जिसमें 10 बार तो जैन कुल नहीं मिला। हमें मिले हुए का कभी अभिमान नहीं करना चाहिए। अपने से नीचे वाले लोगों का सम्मान करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि अहंकार हमसे नीचे वाले को तिरस्कार करे बिना मानती नहीं। इस कारण भगवान को वासुदेव के भव में भी अपमानजनक कुल में जन्म मिला। अंतिम भव में आध्यात्मिक क्षेत्र की सबसे बड़ी पोस्ट मिलने पर भी अंजाम भुगतना पड़ता है। केवल छोटे से अहंकार में तिरस्कार का कितना बड़ा फल मिलता है। अगर गलत निमित्त में जाओगे तो विनाश निश्चित है। हम अनादि काल से कुसंस्कार लेकर फिर रहे हैं। उसकी चिंगारी कब उठेगी, कह नहीं सकते।

उन्होंने कहा कि यदि चरित्र नहीं है तो पैसा और पद- प्रतिष्ठा नगण्य है। चरित्र के कारण खून की नदियां बही है। आज चरित्र व संस्कार नहीं होने के कारण समाज में लव जिहाद हो रहे हैं। उन्होंने ब्रम्हचर्य की नौ सीमाएं बताई अच्छा स्थान, अच्छी बातचीत यानी जिससे मन बिगड़े नहीं। स्त्री कथा वगैरह का वर्णन अधिक आता है जिसे पढ़कर पुनरावर्तित की कोशिश होती है। अनादिकाल से हमारे अंदर गलत आकर्षण रहा है। ग़लत चीजों का प्रचार प्रसार नहीं होना चाहिए। प्रवचन की पुस्तकें रखने में आप कहते हो अशातना लगती है लेकिन गलत साहित्य का प्रतिबंधन नहीं है, इससे खराबा आता है। इसका पालन करना पहले स्वयं से चालू करो।

अच्छी बैठक, नेत्र संयम यानी अच्छा देखना, अच्छी मंडली यानी अड़ोस पड़ोस का माहौल, अच्छी सोच यानी भूतकाल का संस्मरण याद नहीं करना और भविष्य की योजना नहीं बनाना, सात्विक भोजन यानी कच्ची विगई नहीं का उपयोग नहीं करना, अति सुख आहार का त्याग यानी उणोदरी, जिसके अभाव में विकार का कारण बन सकता है, सादा जीवन जीना यानी जिसे नहीं दिखाना है, उसके सामने श्रृंगार या प्रदर्शन नहीं करना। अपरिग्रही जीवन बनाना है तो सादा जीवन जीना जरूरी है। प्रवचन में उपस्थित अमेरिका के सेन फ्रांसिस्को से आए जयेश भाई खोना ने संबोधन में युवाओं में जागृति पैदा कर उनको धर्म से जोड़ने पर बल दिया। सेन फ्रांसिस्को नगर में कुल 2100 जैन परिवार रहते हैं।

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