कोडमबाक्कम् वड़पलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज तारीख 16 अगस्त मंगलवार को प.पू. सुधा कवर जी मसा ने महाप्रभू महावीर की मंगलमयी वाणी का उद्बोधन करते हुए फरमाया! श्रावक के छः आवश्यक सूत्र में से एक सामायिक है और सामायिक में वंदना का बहुत बड़ा महत्व है!
मन शुद्धि वचन शुद्धि, सिर झुका कर श्रृद्धा से, “तिक्खुतो” के पाठ से की गयी वंदना आत्मा को मोक्ष गति की तरफ ले जाती है। वंदना हृदय की भक्ति एवं श्रद्धा की अभिव्यक्ति है! बिना भाव के सिर्फ “तिक्खुतो” के पाठ से वंदना नही होती! वंदना कर्मों का क्षय करने में सहायक होती! वंदना दो प्रकार की होती है! एक द्रव्य वंदन और दूसरी भाव वंदन! द्रव्य वंदन प्रत्यक्ष रूप से और भाव वंदन परोक्ष रूप से की जाती है! दोनों में भाव शुद्ध होने चाहिए! नमन हमारी संस्कृति का आधार है! गुरुजन हमें कहीं भी दिखाई दें तो तत्काल सिर झुका कर मत्थएणं वंदामि बोलकर नमन करें।
सुयशा श्रीजी ने फ़रमाया:-हम हमारे जीवन में बहुत से लोगों से नाते रिश्तेदारों से मिलते हैं! हम सब को खुश नहीं रख सकते और ना ही हम सभी से खुशी पा सकते हैं! कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ लोगों को हम दुश्मन मान लेते हैं और उन्हें पता भी नहीं होता! वैसे ही हमें पता नहीं होता किसने हमें दुश्मन मान लिया है! हम कितने भी अच्छे रहेंगे कितना भी अच्छा जीवन जिएंगे तो भी किसी न किसी को दिक्कत जरूर होगी! हमारे पास कितना भी पैसा हो हम तीन चीजों को टाल नहीं सकते! पहला रोग दूसरा वृद्धावस्था और तीसरे मौत!
रुपए पैसों का आदान-प्रदान हो सकता है लेकिन रोग, वृद्धावस्था और मृत्यु ना तो हम किसी के ले सकते हैं और ना ही किसी को दे सकते हैं! हमें हमेशा सत्संग करना चाहिए लोगों की मदद करनी चाहिए, धर्म करना ध्यान चाहिए! बुढापे की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए! बुढ़ापे में आंख की नजर में, कान से सुनने में और बोलने में भी कमजोरी आ जाती है! तब कुछ करना चाहे तो भी इतना आसान नहीं होता है जितना जवानी में आसान होता है! धर्म की परिभाषा बहुत विशाल है! इसलिए हमें माला फेरना, सामायिक करना या तपस्या करना, सब कुछ भाव शुद्धि से करना चाहिए!