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नमन हमारी संस्कृति का आधार है – साध्वी सुधाकंवर

नमन हमारी संस्कृति का आधार है – साध्वी सुधाकंवर

कोडमबाक्कम् वड़पलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज तारीख 17 अगस्त बुधवार को प.पू. सुधा कवर जी मसा ने महाप्रभू महावीर की मंगलमयी वाणी का उद्बोधन करते हुए फरमाया श्रावक के आवश्यक छः सूत्रों में चौथा सूत्र प्रतिक्रमण है! प्रतिक्रमण करने से आत्मा सावधान हो जाती है और चरित्र के धर्मों को और दागों को साफ कर देती है! प्रतिक्रमण देव दर्शन के प्राण है भीतर का कोना कोना प्रकाशित हो जाता है! हमारी दिनचर्या में हम जो सही या गलत कार्य करते हैं उसकी आलोचना करना, उस अतिक्रमण से अंतर्मन से पुनः लौट कर आने की प्रक्रिया को प्रतिक्रमण कहते हैं! अतिक्रमण के क्रोध में कोई भी व्यक्ति जी नहीं सकता! उस अवस्था से स्वरूप में आना और शांत चित्त होकर लौटने को प्रतिक्रमण कहते हैं! जैसे मैले कपड़े साबुन से धोते हैं वैसे ही पापों के मैल को धोना है तो प्रतिक्रमण करना आवश्यक है! गंगा में नहाने से तन का मैल दूर होता है मन का मैल धोने के लिए आत्मा को उज्जवल करने के लिए प्रतिक्रमण करना आवश्यक है!

चेहरे पर कोई धब्बा या दाग लग जाता है तो धोने के बाद आईना देखते हैं, वैसे ही हमारे मन के अंदर जमें धब्बों को साफ करने के लिए, प्रतिक्रमण आवश्यक है! प्रतिक्रमण दो प्रकार से होते हैं द्रव्य प्रतिक्रमण और भाव प्रतिक्रमण! पाटियां बोलना और प्रत्यक्ष रूप में सब को प्रतिक्रमण कराना “द्रव्य प्रतिक्रमण” कहलाता है! मन उपयोग सहित अपने दोषों की पवित्र मन से आलोचना करने की प्रक्रिया को “भाव प्रतिक्रमण” कहते हैं! जहां पर ज्ञान नहीं होता वहां पर नकल होती है! और जहां पर नकल होती है वहां उज्जवल एवं निर्मल भाव शुद्धि से अतिक्रमण नहीं होता है! किसी के कहे गए अब वचन हमें जीवन पर्यंत याद रहते हैं लेकिन जब हम प्रतिक्रमण सीखने बैठते हैं तो कुछ भी याद नहीं रहता! चातुर्मास हमें ज्ञान सीखाने के लिए एवं धर्म ध्यान सीखाने के लिए आते हैं! प्रतिक्रमण हमारी मूल पूंजी है और हर जैन को विधिपूर्वक प्रतिक्रमण करना चाहिए!

सुयशा श्रीजी के मुखारविंद से:-हम हमारे भूतकाल में हुयी कुछ गलतियों से ज्यादा दुखी रहते हैं! माफ करना या फिर माफी मांग लेना इतना सरल नहीं होता है क्योंकि हमारा अहंकार बीच में आ जाता है! गौतम बुद्ध के पास एक व्यक्ति क्रोध में आता है और उनके मुंह पर थूक कर चले जाता है! दूसरे दिन वही व्यक्ति गौतम बुध के पास आकर माफी मांग लेता है! गौतम बुद्ध पहले ऐसे बनते है जैसे कि उसे जानते पहचानते ही नही और और उन्हे पहले दिन का कोई भी किस्सा याद ही नहीं, उसके बाद उस व्यक्ति के ज्यादा अनुनय विनय करने पर उसे माफ भी कर देते हैं!

उनके शिष्यों ने बड़ी कौतूहल पूछा कि आपको गुस्सा नहीं आया अच्छी बात है लेकिन, आपने उसे माफ क्यों कर दिया..? गौतम बुद्ध ने कहा कि कल उसके चेहरे पर क्रोध था लेकिन आज उसके चेहरे पर पश्चाताप था! जो भी व्यक्ति अंतर्मन से क्षमा याचना करें उसे माफ कर देना ही अच्छा बात है! कभी कोई हमारी बातों से या हमारे कार्यों से हमारी प्रशंसा कर देता है तो हम बहुत खुश हो जाते हैं! वैसे ही कभी कोई हमें भला बुरा कहता है या गालियां देता है तो हम बहुत दुखी हो जाते हैं! गुरुजनों के मुखारविंद से एक घंटा का प्रवचन सुनकर हम आते हैं वह हमें याद नहीं रहता लेकिन उसी समय बाहर हुआ 5 मिनट का झगड़ा हमारा पूरा दिन बर्बाद कर देता है! हमारा मन उसी झगड़े में घुटता रहता है!

हमारे के सबसे बड़े दुश्मन हम खुद हैं हमें हमारे कड़वी यादों को भुला देना चाहिए! आगे भरोसा ने फरमाया, हमें हमारे से कमजोर वर्ग को ऊपर उठाने का प्रयत्न करना चाहिए! दबी हुई को दबाना अच्छी बात नहीं है! हमें हमारे व्यापार में और समाज में सभी तरह के और गांव से मिलना जुलना पड़ता है!! खास करके कमजोर वर्ग के लोगों के साथ हमें प्रेम से पेश आना चाहिए, उनके लिए हमारा स्वभाव प्रेरणा बनना चाहिए, उन्हें हम हमेशा प्रोत्साहित करते रहना चाहिए! हमें हमारे से ज्यादा ऐश्वर्य लोगों को देखकर ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए! हमारे से कमजोर वर्गों की सहायता करके उन्हें ऊपर उठाना है! वह हमारे बराबर हो जाएगा तो यह वह हमारे से ऊपर उठ जाएगा तो, ऐसे बहू को जाग कर सभी के साथ प्रेम प्रेरणा और प्रोत्साहन से पेश आना चाहिए!

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