साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय व भुवनरत्न विजय के सान्निध्य में सोमवार को रैली निकाली गई। रैली मुनि संयमरत्न विजय के वर्धमान तप की 37वीं ओली एवं नवकार आराधना, मासखमण सिद्धितप, भक्तामर तप आदि विभिन्न तपस्याओं की अनुमोदनार्थ निकाली गई जो राजेंद्र भवन आकर धर्मसभा में परिवर्तित हुई।
इस मौके पर मुनि संयमरत्न विजय ने कहा नवकार में आया हुआ ‘क’ कहता है कि कषाय चार होते हैं जो इन चार कषायों में से एक कषाय को जान लेता है, वह समस्त कषायों को जानकर कषायमुक्त होने का प्रयास करता है। जो एक मंत्र की साधना कर लेता है, उसे सिद्धि शीघ्रता से मिल जाती है। जो एक को जान लेता है, वह सब को जान लेता है और जो सबको जानने में लगा रहता है, वह भटक जाता है।
जीवन जीने की एक धारा हो तो लक्ष्य की प्राप्ति सरलता से हो जाती है। नवकार प्रत्येक प्राणी को अहं से अर्हं की ओर ले जाने में बहुत सहायक रूप है। अहं सर्वत्र व्याप्त है, अहं से अर्हं की स्थिति को प्राप्त करना हो तो नवकार को आत्मसात् करना होगा।
अहंकार और चमत्कार के पीछे हमने हमारी आत्मिक शक्ति को खो दिया है, मात्र संसार को बढ़ाने, सजाने और उसे पाने में ही हमारी दौड़ निरंतर जारी है। बिना नमन किए तो कोई भी अपने जीवन का नवसृजन नहीं कर सकता। नमस्कार के अभाव में अहंकार हमारे भीतर ठूंस-ठूंस कर भर चुका है और इस अहंकार ने हमें चमत्कार की चकाचौंध में दौडऩा सिखा दिया है।