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ज्ञान वाणी

नदी के समान विहार ही संतों का स्वभाव है : उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

नदी के समान विहार ही संतों का स्वभाव है : उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

चेन्नई. शनिवार को श्री एएमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज द्वारा चातुर्मास पूर्ण कर मरलेचा गार्डन, वेपेरी में विहार किया गया। इससे पहले सहयोग और समर्पण के लिए उपाध्याय प्रवर ने चातुर्मास समिति और सभी भक्तजनों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए भक्तामर के पाठ के साथ भावनात्मक विदाई में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया।

मुनि तीर्थेशऋषि ने अपने भावों को शुभ घड़ी आई करते विहार…. भक्ति भजन के माध्यम से प्रस्तुत किया। उपाध्याय प्रवर चातुर्मास स्थल से सभी श्रद्धालुओं के साथ विहार कर भगवान महावीर और जिनशासन के जयघोष के साथ मरलेचा गार्डन पहुंचे और वहां पर धर्मसभा आयोजित की गई।

उपाध्याय प्रवर ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि प्रसव के समय हुई पीड़ा कुछ समय बाद न मां को याद रहती है न बेटे को। उसी प्रकार एक जगह की खुशी और दु:खी सभी को दूसरी विहार करके भुला दिया जाता है। ऋषि, योगी, साधक के लिए विहार और प्रवास मंगल है। यह उसी प्रकार प्रशस्त होना चाहिए जैसे नदी का बहना-नन्दनवन को जन्म देता है और हवा का बहना जीवन को सुकून देता है। परमात्मा का श्रमण भी नदी और हवा के समान विहार करता है, यही प्रभु के वचनों की सत्यता है। इसी के अहसास से जिनवाणी की गरिमा बनी हुई है। परमात्मा ने कहा है- प्यार करने वाले मिले या कितनी भी अनुकूलता हो तो भी अटकना नहीं है। प्यार औरर अनुकूलता अटकाती है और संसार का स्वभाव है कि इसे यह बहुत अच्छा लगता है, छोडऩे का मन नहीं होता। परमात्मा ने कहा है कि मंजिल प्राप्त करनी है तो कहीं भी अटकना मत।

सभी परंपराओं में पौराणिक समय में विहार का विधान रहा है और तीर्थंकर की कृृपा है कि जैन धर्म में यह विधान अक्षुण्ण बना हुआ है। नए रास्ते खुलते जाते हैं, साथ में मंगलभाव हो तो मंगल ही होता है। धर्म उत्कृष्ट मंगल है, इसमें हम तन्मय रहें।

पिछले चार महीनों में किए गए सभी कार्यक्रम उत्तम रहे। इस चातुर्मास ने शिखर छुआ है, जिसमें सभी का सहयोग रहा। गुरु भगवंत की कृपा है जो चेन्नईवासियों का असीम प्रेम मिला, जिसको शब्दों में कहा नहीं जा सकता। परिस्थितियांआती है और चली जाती हैं लेकिन आस्था, निष्ठा अक्षुण्ण रखते हैं उसे भुलाया नहीं जा सकता। भक्ति का स्पर्श पाकर एक छोटी-सी ओस की बूंद भी मोती बन जाती है।

अतीत के विचार हमें आगे बढऩे नहीं देते इसलिए अतीत के विचारों को छोड़कर परमात्मा पर आस्था के साथ अपने कार्यों को शुरू करेंगे तो उनमें जरूर सफल हो पाएंगे। आस्था से लिए गए निर्णयों में चोट नहीं लगती है। अपने विरोध को भी शालीन शब्दों में रखा जा सकता है। तिथियां भुलाई जा सकती है लेकिन उपकार नहीं भुलाए जा सकते। कोमल फूलों की मालाएं संभालने के लिए उतना ही मजबूत दिल भी चाहिए। सदैव अपने देव, गुरु, धर्म के प्रति समर्पित रहें।

उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा कि गौतमलब्धि कलश दान देने की प्रवृत्ति को बढ़ाता है और दान से अंतराय कर्मों का क्षय होता है। इस अवसर पर कलश की बोली लेनेवालों को कलश सुपुर्द किए गए। चातुर्मास समिति के पदाधिकाारियों का सम्मान किया गया।

इस अवसर पर गौतमचंद कांकरिया, नवरतनमल चोरडिय़ा, जेठमल चोरडिय़ा, पदमचंद तालेड़़ा, अरिहंत, किशन तालेड़ा, अजीत चोरडिय़ा, महावीर भंडारी, लिखमीचंद, नरेन्द्र मरलेचा, धर्मीचंद सिंघवी, कमलचंद खटोड, यशवंत पुगलिया, महावीर सुराणा, कमल छल्लाणी, सुनिल कोठारी सहित समाज के लोग उपस्थित रहे।

30 नवम्बर को मधुकर श्री मिश्रीमलजी महाराज की जयंती पर नॉर्थ टाउन में एएमकेएम धर्मपेढ़ी के अंतर्गत बनाए गए नए स्थानक का उद्घाटन उपाध्याय प्रवर सहित अनेकों संत-साध्वियों के सानिध्य में किया जाएगा और 16 दिसम्बर को कर्नाटक गज केसरी गणेशीलालजी महाराज व आचार्य आनन्दऋषिजी महाराज की दीक्षा जयंती का कार्यक्रम सामायिक दिवस के रूप में मईलापुर में मनाया जाएगा।

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