कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज रविवार तारीख 16 अक्तूबर 2022 को परम पूज्य सुधा कवर जी मसा के सानिध्य में मृदभाषी श्री साधना जी मसा ने उत्तराध्ययन सूत्र फरमाया! सुयशा श्रीजी मसा ने भगवान महावीर की जीवनी को आगे बढाते हुए फरमाया कि नंदन मुनि ने अपने भव में 11 लाख 60 हजार मास खमण की तपस्या की! परमात्मा की आत्मा दशवै देवलोक से एक ऐसे जातिकुल में आती है जिसमें अब तक किसी तीर्थंकर ने जन्म नहीं लिया! मरीचि के समय का अहंकार कर्मों को जन्म जन्मान्तर तक भोगना पड़ रहा था!
एक दिन उच्च गोत्रीय, वेदों के ज्ञाता, श्रमणोपासक एवं तीर्थंकर भगवान पारसनाथ की उपासना करने वाले ब्राह्मण रिषभदत्त के पत्नी देवानंदा को अर्ध निद्रा लेकिन, जागृत चेतना अवस्था में चौदह महा स्वपन दिखाई देते है और यह सारा वृतांत बडे प्रसन्नचित मुद्रा से अपने पति को बताती है! निष्कर्ष में पति कहते हैं कि तुम तीर्थंकर या चक्रवर्ती की मां बनने वाली हो! 82 दिन समाप्त होकर 83 वे दिन देवलोक में शकेन्द्र देव का आसन कम्पायमान होता है और मालूम पड़ता है कि पहली बार किसी तीर्थंकर का जन्म ब्राह्मण की कुक्षी से होने वाला है!
तीर्थंकर क्षत्रिय कुल, सात्विक माता-पिता, पराक्रमी, बलशाली योद्धा के यहां जन्म लेते हैं! तीर्थंकर का काम दुख लेना है और सुख देना है। इसलिए शकेन्द्र देव हरिणैगमेशी देव को आज्ञा देते हैं और, देवानंदा और त्रिशला माता के गर्भ का संहरण करा देते हैं! तीर्थंकर भगवान के गर्भ में आते ही माता त्रिशला स्पष्ट रूप से क्रमानुसार 14 स्वप्न देखती है! अचानक निद्रा भंग हो जाती है और ऐसी अनुभूति, जिसे वे महसूस तो कर सकती है लेकिन बयां नहीं कर सकती!
महाराजा सिद्धार्थ को उठाते हैं! त्रिशला माता को सम्मान पूर्वक ध्वजासन पर बैठाने के बाद सारी खुशियों का अनुभव सुनने के बाद राजा कहते हैं कि आपकी कुक्षी से नवरत्न तीर्थंकर का जन्म होगा! सिद्धार्थ के छोटे भाई सुपार्श्व त्रिशला माता से कहते हैं, “आप मेरे प्रभु की माता है और आपका शरीर और कुक्षी मेरे परमात्मा का मंदिर है! तीर्थंकरों को मति ज्ञान श्रुति ज्ञान और अवधि ज्ञान होता है! अपनी माता को कष्ट ना देने की भावना से भगवान महावीर थोड़ी देर के लिए स्थिर हो जाते हैं! उनका हिलना डुलना बंद होते ही महारानी घबरा जाती है और बेहोश हो जाती है! भगवान महावीर सोचते हैं कि मैंने तो भला चाहा था और संकल्प कर लेते हैं कि जब तक माता-पिता जीवित है वे संयम नहीं लेंगे!
नौ महीने बाद उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र समय में परमात्मा का जन्म होता है देवलोक से 56 दिक्कुमारियां और 64 इन्द्र देव पहले त्रिशला माता को और बाद में तीर्थंकर भगवान को वंदन करते हैं! शकेन्द्र देव तीर्थंकर भगवान को मेरु पर्वत ले जाते हैं और तीर्थंकर परमात्मा का अभिषेक किया जाता हैं! राजा सिद्धार्थ को समाचार मिलते हैं पूरे नगर में उत्सव, और सभी तरह के “कर” (tax) में कटौती कर दी जाती है! आत्मा तो सभी की सर्वशक्तिमान होती है लेकिन पुण्य प्रबल के प्रभाव से अवतरित 24 वे तीर्थंकर का प्रभाव कुछ अलग ही होता है!
*क्रमशः*