चेन्नई. अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी कुमुदलता ने प्रवचन में कहा कि ध्यान स्वर्ग का सिंहासन होता है। यह नकारात्मक ऊर्जा को खत्म कर शरीर को स्वस्थ बनाने का मार्ग है। ध्यान के माध्यम से क्रोध, मान, माया, लोभ, राग-द्वेष रूपी कर्मों का क्षय कर जीवन का उद्धार करें।
उन्होंने कहा, काउसग्ग चार प्रकार के होते हैं आर्तध्यान, रौद्रध्यान, सूक्ष्म धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान। भगवान महावीर ने सरल, सूक्ष्म रास्ते बताए धर्म ध्यान और सरल ध्यान करने के लिए। आप अपने सारे काम कर लें लेकिन यह नहीं भूलें कि आपकी जीवन डोर परमात्मा से जुड़ी हुई है। आर्तध्यान और रौद्रध्यान छोडक़र कर्म निर्जरा करें।
साध्वी पदमकीर्ति और राजकीर्ति मन की चंचलता की विवेचना करते हुए कहा कि मन बड़ा चंचल होता है। इसका पेट कभी नहीं भरता क्योंकि इसकी आकांक्षाएं मिटती ही नहीं। जब तक मन में संतुष्टि का भाव नहीं आएगा तब तक मन नहीं भरेगा। जिसके घर में संतोष रूपी दौलत होती है उसका कल्याण हो जाता है। संतोष रूपी दौलत के सामने दुनिया की सारी दौलत बेकार है।
बुधवार को साध्वी चरणप्रज्ञा की पुण्यतिथि मनाई जाएगी। गुरुवार को भक्तामर की ४५वीं कड़ी की आराधना की जाएगी। शुक्रवार को पदवती मां की एकासना की आराधना की जाएगी। शनिवार और रविवार को दोपहर 1 से 4 बजे तक योग शिविर आयोजित किया जाएगा।