चेन्नई.श्रमण संघीय चतुर्थ पट्टधर आचार्य सम्राट डॉ. शिव मुनि म. ने ध्यान साधना के द्वारा स्वयं का जीवन तो रूपांतरित किया ही है, साथ ही 81 वर्ष की आयु में भी वे अपने सान्निध्य में आने वाले प्रत्येक साधु-साध्वी व श्रावक-श्राविका के जीवन का सम्यक रूपांतरण निरंतर करते जा रहे हैं। उनके ध्यान योग, जप योग, तप योग, ज्ञान योग व समत्व योग को हम वंदन – अभिनंदन करते हैं। यह विचार- ओजस्वी प्रवचनकार डॉ. वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में आयोजित धर्म सभा में प्रकट किए। गुरुदेव ने कहा आचार्य भगवन डॉ. शिव मुनि जी का जन्म अपने ननिहाल राणियां मंडी (हरियाणा) में हुआ। लगभग 30 वर्ष की अवस्था तक आप अपने पैतृक गांव मलोट मंडी (पंजाब) में रहे। राष्ट्र संत दादा गुरुदेव भण्डारी पदमचन्द्र जी एवं आराध्य गुरुदेव श्रुताचार्य अमर मुनि जब कभी आपके गांव में पधारे तो आप आत्मा, परमात्मा धर्म, कर्म, पुनर्जन्म संबंधी अनेक प्रश्नों की झड़ी लगा देते व गुरु से समाधान प्राप्त करते।
घर में रहते हुए आपने एम. ए की पढ़ाई पूर्ण की परंतु संसार से पूर्ण रूपेण आपका मन विरक्त रहा। संसार की ओर आपको आसक्त करने के उद्देश्य से परिवार वालों ने आपको विशेष आग्रह कर विदेश यात्रा पर भेजा। अनेक देशों की यात्रा कर आपका वैराग्य और भी दृढ़ हो गया व संसार असार लगने लगा। 17 मई के दिन आपने अपनी तीन बहनों के साथ जैन मुनि दीक्षा ग्रहण की। दादा गुरुदेव महामहिम भण्डारी पदम चन्द्र जी म. ने अपने श्री मुख से आपको दीक्षा मंत्र प्रदान किया तथा प्रवर्तक अमर मुनि ने अपने हाथों से आपको सन्यास -वेष धारण करवाया। दीक्षा के पश्चात आप जप-तप-सेवा, ज्ञान आराधना के साथ साथ ध्यान साधना में जुट गए। गुरु के विशेष आग्रह पर आचार्य भगवन आनंद ऋषि ने आपको श्रमण संघ का युवाचार्य घोषित किया। वर्तमान में आप श्रमण संघ जैसे महान धर्म संघ का चतुर्थ आचार्य के रूप में कुशल संचालन कर रहे हैं। आचार्य श्री की पावन जन्म जयंति पर भाई- बहनों, बच्चों व युवाओं ने बड़ी श्रद्धा से लोगस्स जप अनुष्ठान में भाग लिया।