जब हम समर्पण के साथ कार्य करते हैं तब इससे हमारा मन शुद्ध हो जाता है और हमारी आध्यात्मिक अनुभूति गहन हो जाती है। फिर जब मन शांत हो जाता है तब साधना उत्थान का मुख्य साधन बन जाती है। ध्यान द्वारा योगी मन को वश में करने का प्रयास करते हैं क्योंकि अप्रशिक्षित मन हमारा बुरा शत्रु है और प्रशिक्षित मन हमारा प्रिय मित्र है। कठोर तप में लीन रहने से कोई सफलता प्राप्त नहीं कर सकता और इसलिए मनुष्य को अपने खान-पान, कार्य-कलापों, अमोद-प्रमोद और निद्रा को संतुलित रखना चाहिए। आगे फिर वे मन को भगवान में एकीकृत करने के लिए साधना का वर्णन करते हैं। जिस प्रकार से वायु रहित स्थान पर रखे दीपक की ज्वाला में झिलमिलाहट नहीं होती। ठीक उसी प्रकार साधक को मन साधना में स्थिर रखना चाहिए।
वास्तव में मन को वश में करना कठिन है लेकिन अभ्यास और विरक्ति द्वारा इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इसलिए मन जहाँ कहीं भी भटकने लगे तब हमें वहाँ से इसे वापस लाकर निरन्तर भगवान में केंद्रित करना चाहिए। जब मन शुद्ध हो जाता है तब यह अलौकिकता में स्थिर हो जाता है। आनन्द की इस अवस्था को समाधि कहते हैं जिसमें मनुष्य असीम दिव्य आनन्द प्राप्त करता है। भगवान सदैव पूर्व जन्मों में संचित हमारे आध्यात्मिक गुणों का लेखा-जोखा रखते हैं और अगले जन्मों में उस ज्ञान को पुनः जागृत करते हैं ताकि हमने अपनी यात्रा को जहाँ से छोड़ा था उसे वहीं से पुनः आगे जारी रख सकें। अनेक पूर्व जन्मों से अर्जित पुण्यों और गुणों के साथ योगी अपने वर्तमान जीवन में भगवान तक पहुँचने में समर्थ हो सकता है।
इस अध्याय का समापन इस उद्घोषणा के साथ होता है कि योगी भगवान के साथ एकीकृत होने का प्रयास करता है इसलिए वह तपस्वी, ज्ञानी और कर्मकाण्डों का पालन करने वाले कर्मी से श्रेष्ठ होता है। सभी योगियों में से जो भक्ति में तल्लीन रहता है वह सर्वश्रेष्ठ होता है।मन की शक्ति द्वारा अपना आत्म उत्थान करो और स्वयं का पतन न होने दो। मन जीवात्मा का मित्र और शत्रु भी हो सकता है। जिन्होंने मन पर विजय पा ली है, मन उनका मित्र है किन्तु जो ऐसा करने में असफल होते हैं मन उनके शत्रु के समान कार्य करता है। वे योगी जिन्होंने मन पर विजय पा ली है वे शीत-ताप, सुख-दुख और मान-अपमान के द्वंद्वों से ऊपर उठ जाते हैं। ऐसे योगी शान्त रहते हैं और भगवान की भक्ति के प्रति उनकी श्रद्धा अटल होती है। वे योगी जो ज्ञान और विवेक से संतुष्ट होते हैं और जो इन्द्रियों पर विजय पा लेते हैं, वे सभी परिस्थितियों में अविचलित रहते हैं। वे धूल, पत्थर और सोने को एक समान देखते हैं। जब और जहाँ भी मन बेचैन और अस्थिर होकर भटकने लगे तब उसे वापस लाकर स्थिर करते हुए भगवान की ओर केन्द्रित करना चाहिए।
उपरोक्त उद्गार पूज्य महासती श्री प्रियदर्शना जी महाराज साहब ने दिवाकर भवन पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहे तत्व चितिंका पूज्य महासती श्री कल्पदर्शना जी म.सा.में आज पर्युषण महापर्व के सातवे दिवस पर अंतगढ़ सूत्र का वाचन किया। धर्म सभा को संबोधित करते हुए आपने कहा कि पर्यूषण महापर्व हमें आध्यात्मिक की ओर ले जाने का पर्व है यह दूसरे लौकिक पर्व की तरह नहीं हो कर अपने स्वयं की आत्मा का पर्व है अपनी स्वयं की आत्मनिंदा करो तो इस भव भ्रमण का फंदा छूट जाएगा। गुणीजनो को देखकर वंदन करो अवगुणी को देखकर माध्यस्थ भाव मन में लाओ और दुखी को देखकर करुणा के भाव अपने मन मे होना चाहिये। सभी के साथ मैत्री भाव का व्यवहार करो। उपरोक्त जानकारी देते हुए श्री संघ अध्यक्ष इंदरमल दुकड़िया एवं कार्यवाहक अध्यक्ष ओमप्रकाश श्रीमाल ने बताया कि आज की धर्म सभा में श्रीमति मधु जी सोनी ने 20 उपवास, मनीष जी मनसुखानी एवं श्रीमति साधना जी कोचट्टा ने 10 श्रीमति शशिजी छाजेड़ ने 8 शीतलजी मेहता, प्रज्ञाजी पटवा, दीपीकाजी राका ने 7 उपवास के प्रत्याख्यान लिये। कल संवत्सरी पर्व मनाया जावेगा 1 सितंबर गुरूवार को प्रातः 8:30 बजे दिवाकर भवन पर सामूहिक क्षमापना का कार्यक्रम होगा।
तत्पश्चात चल समारोह के रूप में शहर के विभिन्न मार्गो से होता हुआ जुलूस सागर साधना भवन पहुंचेगा जहां केसरिया दूध का आयोजन श्रीमान सुरेंद्रजी महेशजी मनीषजी दर्शजी मेहता परिवार द्वारा नवयुवक मंडल के सानिध्य में रखा गया है। साथ ही सांय 5:00 बजे स्वामीवात्सल्य का आयोजन श्री जैन दिवाकर नवयुवक मंडल द्वारा जनता परिसर खाचरोद रोड़ पर रखा गया है। नवयुवक द्वारा आयोजित समस्त कार्यक्रमों में अधिक से अधिक भाग लेने की अपील श्रीसंघ अध्यक्ष इंदरमल दुकड़िया एवं कार्यवाहक अध्यक्ष ओमप्रकाश श्रीमाल उपाध्यक्ष पवन संघवी, कनकमल चोरड़िया, विनोद ओस्तवाल, सुशील मेहता, कमलेश कटारिया, महामंत्री महावीर छाजेड़, सहमंत्री चिंतन टुकड़िया एवं कोषाध्यक्ष विजय कोचट्टा, तरुण खारीवाल पुखराज कोचट्टा पारसमल बरडिया शांतिलाल डांगी श्रीपाल कोचट्टा, मनोज डांगी रुपेश दुग्गड, ऋषभ छाजेड़, सौरभ दुग्गड़, वैभव ओस्तवाल, सुजानमल ओरा, आनंद राका वर्धमान मांडोत ने की। प्रभावना का लाभ पुष्प परिवार इन्दोर एवं कनकमल सुराना परिवार द्वारा लिया गया। धर्म सभा का संचालन महामंत्री महावीर छाजेड़ ने किया आभार उपाध्यक्ष विनोद ओस्तवाल ने माना।