आज विजयनगर स्थानक भवन में जैन दिवाकरिय साध्वीश्री प्रतिभाश्रीजी ने प्रतिक्रमण का आगे विवेचन करते हुए,सामायिक व सामायिक में कायोत्सर्ग पर विस्तार से समझाते हुए बताया कि कायोत्सर्ग यानि ध्यान। ध्यान के लिए पहले क्षेत्र शुद्धि तथा फिर संकल्प लेना होता है।ध्यान पूर्ण विवेक से तसउत्तरीकरनेणं, पायच्छितकरनेणम, वीसोही करनेणम, विसल्लीकरनेणम, पावणं कंमाणं का किया जाता है। साध्वी श्री ने उदाहरण देकर कि महाकाल शमशान में गजसुकुमार मुनि,मितार्यमुनि व खन्दक मुनि ने ध्यान करके परमात्मा पद को प्राप्त किया।
साध्वी दीक्षिताश्री ने सुखविपाक सूत्र के तहत यथा नाम तथा गुण से सम्बंधित राजा और प्रजा व पिता पुत्र के बारे में विवेचन सुनाया।
साध्वी प्रेक्षा श्री ने राग और द्वेष को मीठा जहर व कड़वा जहर बताते हुए कहा की दोनो ही जहर व्यक्ति के भव भव को बिगाड़ देता है।इन दोनों की तुलना बिजली।के।दोनों तार से करते हुए कहा कि बिजली का एक तार व्यक्ति को अपनी ओर खींच कर मार देता है वंही दूसरा तार व्यक्ति को धक्का देकर मार देता है ठीक उसी प्रकार राग और द्वेष होते हैं।संघ के मंत्री कन्हैया लाल सुराणा ने ता 7 से 11 अगस्त को पूज्य मिश्रीमल म सा व पूज्य रूपमुनि जी म सा के जन्म जयन्ती के उपलक्ष पर आयोजित नवतत्व की प्रदर्शनी के बारे में विस्तार से जानकारी दी।