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धार्मिक पर्वों को संस्कार-सौहार्द से मनाना चाहिए : डॉ वसंतविजयजी म.सा.

धार्मिक पर्वों को संस्कार-सौहार्द से मनाना चाहिए : डॉ वसंतविजयजी म.सा.

वसंत स्वर्णमहल श्रीजी वाटिका में राष्ट्रसंत श्रीजी के प्रवचन

 इंदौर। हमारा समाज धर्म-कर्म तो खूब करता है इसमें यदि संतों का सही मार्गदर्शन-प्रेरणा मिले तो वह व्यवस्थित तो होगा ही उसके सुखद एवं सकारात्मक परिणाम भी मिलेंगे। किसी भी धर्म के पर्व अथवा त्योहारों को संस्कारों के साथ मनाएं तो उसकी भी एक अलग आभा बनती है, समाज में संस्कारित एवं सौहार्द का संदेश मिलता है।
यह कहा श्री कृष्णगिरी पार्श्व पद्मावती शक्तिपीठाधिपति यतिवर्य, राष्ट्रसंत डॉ. वसंतविजयजी म.सा. ने। वे यहां चंदननगर स्थित श्रीजी वाटिका में 36 दिवसीय विशिष्ट साधना-आराधना महोत्सव के तहत विराजित हैं।
अपने दैनिक प्रवचनात्मक संदेश में सर्वधर्म दिवाकर ने बुधवार को कहा कि पर्व दिवस विशेष, नक्षत्र एवं मुहूर्त समय में उनकी विशेष महत्ता के साथ शक्तियां होती है वही ताकत व्यक्ति का कल्याण कर सकती है। उन्होंने कहा व्यक्ति का मन अधोमुखी होता है। मन को सर्वोत्तम बनाने के लिए परमात्मा की भक्ति रूपी कनेक्शन से जोड़ा जाना जरूरी है।
सांसारिक दुनिया को पतन कारक बताते हुए संतश्रीजी ने कहा कि अपनी पुनवानी बढ़ाने के लिए व्यक्ति को दया, दान, धर्म, शील एवं भाव प्रधान बनना ही होगा।प्रसंगवश अनेक उदाहरणों के साथ डॉ वसंतविजयजी ने कहा कि चाहे व्यक्ति, परिवार हो या संघ-समाज कुछ क्रियाएं हमारे मार्ग को उत्थानपरक बनाती हैं तो अनभिज्ञता व दुनियावी चालचलन की क्रियाएं जीवन को नीचे भी धकेल देती है।
इसमें मान प्रतिष्ठा का उच्च होना व गिरना शामिल होता है। उन्होंने कहा कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया निश्चित होती है, भगवान के सामने कोई ढोंग नहीं चल सकता है। कोई इंसान पुण्य भले ही ना करें मगर पाप से बचकर रहना भी जरूरी है, क्योंकि पुण्य करने वाला पुण्यवान बनता है मगर पाप करने वाले प्रभु के दरबार में दंड का भागीदार बनते है।
गुरुभक्त पंकज जैन ने बताया कि इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु भक्त मौजूद थे। सभी का स्वागत विपिन पगारिया ने किया। रितेश नाहर ने आभार जताया।

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