जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने मनोभाव को पवित्र बनाने के लिए गुरुजनो की स्तुति प्रार्थना का स्मरण करना आवश्यक बतलाते हुए कहा जो कार्य शुद्ध हृदय से किया जाता है उस कार्य की सफलता मे कई गुणा वृद्धि स्वतः हो जाती है! जिनवाणी जो तीर्थंकर भगवान की वह पवित्र वाणी है जिसमें रंच मात्र भी राग द्वेष के भाव नहीं रहते, झरने से निकला हुआ पानी एक दम निर्मल होता है उसमें किसी भी प्रकार का कूड़ा कचरा नहीं होता, आकाश से बादलों द्वारा जो बुंदे गिरती है एक दम साफ स्वच्छ जल को लिए रहती है! धरती पर आकर अस्वच्छ हो जाती है!परमपिता परमात्मा की वाणी पूर्णतः शुद्धता को लिए रहती है!हमारा अपना हृदय ही विविध पापों से भरा पड़ा रहता है हृदय रूपी पात्र अशुद्धि से भरा है अगर शुद्ध पात्र मे भगवद वाणी ली जाएगी तो उसका असर भी मांगलकारी होगा!
मुनि जी ने उदारहण देते हुए कहा एक योगी शहर मे अमृतबेचने आया भीड़ अपने अपने पात्र लेकर एकत्रित हो गई! दो दो बुंदे दी गई मगर जिनके पात्र गंदे कुचेले रहे उनमे वे अमृत बुंदे व्यर्थ चली गई इसके विपरीत पवित्र पात्रों की बुंदे लाभ कारी बन गई! सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा श्रद्धा से सस्वर भक्तामर का स्वाध्याय व विविध मंत्रो का उच्चारण करवाया गया जिससे शुद्ध ध्वनिओं की गूंज से तन मन मे स्वस्थता का अनुभव किया गया! आने वाले चार दिनों के बाद यह साधना पूर्ण होगी उस अवसर पर समाज द्वारा अनेक आयोजन किए जा रहे है!महामंत्री उमेश जैन द्वारा विविध सूचनाएं प्रदान कर स्वागत किया गया!आचार्य देवेन्द्र जयंती पर पंच दिवसीय आयोजन रखा गया है!