वेल्लूर. स्थानीय शांति भवन में विराजित ज्ञानमुनि ने कहा जहां अन्याय हो वहां धर्म नहीं हो सकता इसलिए श्रावक सदैव न्यायप्रिय होना चाहिए। सत्य धर्म का ही रूप है। जहां सत्य नहीं वहां धर्म कैसे हो सकता है?
उन्होंने कहा श्रावक को सदैव सत्य और न्याय का ही पक्ष लेना चाहिए। अन्याय का पक्ष लेने से चरित्र दूषित हो जाता है और दूषित चरित्र वाले के पास धार्मिकता और मानवता कभी नहीं रहती।
उन्होंने चरित्र की दृढ़ता को ही धार्मिकता का पहला लक्षण बताते हुए कहा कि वास्तव में चरित्र ही धर्म है।