दिंडीवनम. यहां विराजित जयतिलक मुनि ‘लघु’ ने कहा कि हम सम्यकत्वी और ज्ञानी हैं इसलिए जिनवाणी का श्रवण कर रहे हैं लेकिन अगर धर्म करना चूक गए तो 84 का चक्कर लगाना पड़ेगा। अगर धर्म से चूक गए तो सभी कायों में अनंत वेदना भोगनी पड़ेगी।
पृथ्वीकाय का शरीर कठोर है फिर भी उनको वेदना भोगनी पड़ती है। पृथ्वीकाय के जीवों को फोड़ा जाता है, छेदा जाता है, भेदा जाता है। सोने को अग्नि में तपाया जाता है, वह भी तड़पता है, आज सोने के गहने पहनकर खुश हो रहे हैं, कल भोगना पड़ेगा। पानी के लिए जमीन को फोड़ते हैं, उस पृथ्वीकाय के जीवों को कितनी वेदना होती होगी।
उन्होंने कहा पांच काय में अपकाय का जीव बहुत कोमल है। पानी पर पैर रखकर भी जाते हैं तो भी मर जाते हैं। उन्हें भी अनंत वेदना होती है। एक व्यक्ति करोड़ों लीटर पानी पी लेता है, फिर भी तृप्ति नहीं होती।
पानी पीते रहोगे, प्यास लगती रहेगी। इस जीव ने समुद्र जितना पानी पी लिया फिर भी गला तर नहीं हुआ। जब तक साथ में शरीर है, यह पानी मांगता रहेगा। कर्मों से मुक्त होने पर ही प्यास बुझेगी। उन पापकर्मों से बचने के लिए भगवान महावीर ने प्रासुक निर्दोष जल का उपदेश दिया है।