नार्थ टाउन में ए यम के यम स्थानक में चातुर्मासार्थ विराजित गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि संसार में धर्म ही एक ऐसा साधन है जो सबके लिए हितकारी व मंगलकारी है। संसार में रहते हुए भी धर्म में प्रवृत्ति करनी चाहिए। मर्यादा धर्म का पालन करो जिससे सागर जितना पाप तालाब जितना सीमित हो जाता है। श्रावक के 12 व्रत श्रावक को इतना पाप प्रवृत्ति में सीमित कर देते है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। सागर को पानी से रिक्त नही किया जा सकता पर तालाब को पुरुषार्थ से सुखाया जा सकता।
उसी प्रकार मर्यादित पाप करने वाला उन पापों को आसानी से धो सकता है कर्म क्षय भी सरल हो जाता है। इसलिए भगवान ने ऐसे धर्म का निरूपण किया जिससे श्रावक-श्राविका भी कर्म क्षय कर भव सागर से तिर सकते हैं। और जीव इह भव तथा परभव दोनो में सुख पाता है। निकाचित कर्मों से बचाने के लिए अनुकम्पा की दृष्टि से जिनेश्वर भगवान ने श्रावक धर्म का निरुपण किया । श्रावक का अर्थ:-श्रम करने वाला, व विनय, विवेक से कार्य करने वाला निकाचित कर्म तो तीर्थकंर को भी भोगने पड़ते है व्यक्ति सच ज्यादा बोलता, झूठ तो कषाय के कारण बोलता है। झुठ भी बहुत बड़ा पाप है जिसकी वजह से जीव नरक में भी जाता है।
सच बोलना व याद रखना आसान है जबकि झूठ बोलना व याद रखना कठिन है। झूठ बोलने से निरपराधी जीवों का घात हो जाता है । झुठ की वजह से वैर कर्म का बधं होता है जो जन्म-2 तक साथ चलता है।
पाप कर के यदि प्रायश्चित नहीं करते तो जीव को उस कर्म को भोगना ही पड़ता है। मजाक में लगाया गया आक्षेप भी किसी जीव के धात का कारण बन जाता है इसलिए कहते हैं कि न मजाक से, न भय से झूठ बोलना चाहिए। सच कड़वा होता है उसे सुनने का साम्थर्य होना चाहिए। वाणी का प्रभाव जितना व्यक्ति पर पडता है उतना मारपीट या दंड का नही। बच्चों को झूठ बोलना नही आता, परन्तु वो बड़ों को देखकर झूठ बोलना सीख जाता है। झूठी गवाही देना बहुत बड़ा पाप होता है। इससे निरपराधी को सजा मिल सकती है। कार्यकारिणी सदस्य ज्ञानचंद कोठारी ने संचालन करते हुए बताया कि शुक्रवार शाम को संघ भवन में एक शाम जयमल गुरु के नाम भक्ति संध्या का आयोजन किया जाएगा जिसमें श्री आत्म वल्लभ जैन सेवा मंडल के कलाकार भक्ति गीतों की प्रस्तुति देंगे।