कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि सुबाहु कुमार ने भगवान महावीर के पधारने का जैसे ही सुना वह परिवार सहित भगवान के दर्शन एवं प्रवचन सुनने के लिये तत्काल तैयार हो गये।
क्या हमारे में इतनी तत्परता है की सुनते ही हम धर्म सभा में पहुंच जाये धर्म सभा में प्रवेश के पांच अभिगम कहलाते हैं।
* दूर से जैसे ही भगवान का समोशरण दिखाई दे तो तुरंत सवारी – हाथी, रथ, घोड़ा, ऊंट – आदि आज के जमाने में स्कूटर गाड़ी वगैरा संतो को देखते ही छोड़ देना चाहिये और वंदन करना चाहिये।
*समोशरण में सचित वस्तु फूल फल सब्जी वगैरा अचित वस्तु गहने आभूषण लकड़ी वगैरा सभी बाहर ही रखकर के प्रवेश करना चाहिये।
*एक साटिका वस्त्र अखंड बिना सिला कटा फटा वाला वस्त्र नहीं जिसे उतराशन कहते हैं मुंह पर लगाना चाहिये जिससे अपने मुंह का थूक साधु-साध्वी पर न उछले विवेक का ध्यान रखना चाहिये।
*न अधिक दूर बैठे और न पास गुरु महाराज के शरीर के लगकर और न उनके वस्त्र या आसन पर पांव रखे पूरा ध्यान रखें गुरु महाराज की अशातना न हो और।
*जब हम धर्म श्रवण करें तब एकाग्रता के साथ सुने इधर-उधर ध्यान नहीं जाने दे और न किसी से वार्तालाप करें बहुत शांति से जिनवाणी का श्रवण करके अपने जीवन में उतार कर आत्म कल्याण करें।