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धर्म श्रध्दा के लिए सुखों का करे त्याग: साध्वी सिद्धिसुधा

धर्म श्रध्दा के लिए सुखों का करे त्याग: साध्वी सिद्धिसुधा

चेन्नई. साहुकारपेट के जैन भवन में विराजित साध्वी सिद्धिसुधा ने कहा कि सांसारिक मोह माया पाप का मार्ग होता है। मोह माया के फस कर मनुष्य लगातार पाप में भागीदारी बन रहा है। जब तक जीवन मे अज्ञानता की परत रहेगी तब तक पाप से बचा नही जा सकता है।

धर्म मे सच्ची रुची आने के बाद अज्ञानता कि परत हटेगी और जीवन कल्याण की ओर बढेगा। साध्वी समिति ने कहा कि मनुष्य के जीवन मे जब सुख होता है तब वह परमात्मा को याद नही करता है।  साता वेदना के उदय होने पर मनुष्य के जीवन मे सुखों की प्राप्ति होती है। लेकिन असाता के उदय होने पर मनुष्य के जीवन के दुख दर्द आने लगते है।

दुख दर्द आने के बाद लोग परमात्मा को याद करते है। अगर लोग सुख के समय परमात्मा को याद करे तो दुख आएगा ही नही। लोगो की अज्ञानता की वजह से उनके सुख दुख में बदलते है।

उन्होंने कहा कि सुखी जीवन के दौरान अगर धर्म श्रद्धा आ जाये तो सुख को त्याग देना चाहिए। भगवान महावीर के पास किसी वस्तु धन दौलत की कमी नही थी।

लेकिन धर्म श्रद्धा के लिए सुखों के साधनों को उन्होंने त्याग दिया। धर्म श्रध्दा के लिए सांसारिक सुखों को त्यागने वालो को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। सुख रहते कोई भी परमात्मा को याद नही करता लेकिन थोड़ा भी दुख आने पर भगवान को याद करने लगता है।

लेकिन याद रहे जब तब धर्म के प्रति श्रध्दा नही आएगी तब तक सांसारिक सुख कोई छोड़ नही सकता है। इसके लिए मनुष्य की श्रद्धा अटूट होनी चाहिए। 

उन्होंने कहा कि धर्म श्रद्धा मजबूत होने पर लाख कठिनाई आने पर भी मनुष्य इससे पीछे नही हटेगा।

र्तमान में लोगो की धर्म श्रद्धा बहुत ही कमजोर होती है यही कारण है कि सांसारिक चीजों में कटौती करने के बजाय धर्म के कार्यो में कटौती करते है। याद रहे कि धर्म श्रद्धा लकड़ी और मक्खन के जैसी नही बल्कि मिट्टी के जैसे होनी चाहिए।

आग के सामने आने पर मक्खन पिघल जाता है और लकड़ी जल जाती है। लेकिन मिट्टी आग में तपने के बाद और मजबूत होती है। उन्होंने कहा के जो धर्म के लिए तपते है उनका जीवन निखर जाता है।

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