चेन्नई. शनिवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि व तीर्थेशऋषि महाराज ने मईलापुर जैन स्थानक, चेन्नई में श्रावक- अनेक श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि आदमी स्वयं के भाग्य का निर्माण स्वयं कर नहीं पाता है बल्कि उसके भाग्य का निर्माण दूसरे लोग करते हैं। कभी मां-बाप करते हैं, कभी गुरु करते हैं। जैसे उसे गुरु मिलते हैं वैसा ही उसका भाग्य बनता है।
गुरु मिलने न मिलने पर अपना कोई कंट्रोल नहीं है। जिस पत्थर को अच्छा मूर्तिकार मिल जाए तो उसका भविष्य क्या होगा। उस पत्थर का भाग्य बनाने में उस मूर्तिकार का योगदान होता है। उसी प्रकार यदि अपना भाग्य बनाना आदमी के हाथों में होता तो कोई भी दुर्जन बनना नहीं चाहता, कोई भी गुस्सा करना नहीं चाहता। लेकिन हमें पता ही नहीं चलता कि हम कब दूसरों के वश में होकर कठपुुतली जैसा नाच शुरू कर देते हैं।
वे भाग्यशाली होते हैं जिन्हें चुनाव करने का मौका मिलता है कि उन्हें शकुनी को चुनना है या श्रीकृष्ण को चुनना है। जिन्हें यह अवसर नहीं मिलता वे गुलाम होते हैं, और वे उसे बदल नहीं सकते हैं। यह चुनाव करने का पल हमारे इस जीवन में या पिछले जन्म में आ चुका है और यही चुनाव जन्म-जन्मांतर में साथ चलता है।
इंद्रभूति की आत्मा ने परमात्मा के त्रिपुष्ट वासुदेव के भव में चुनाव किया था। जिन महापुरुषों की हम आज जयंतियां मनाते हैं उन्होंने अपने जीवन के निर्णय को बिना कोई गणित लगाए लिए थे तभी वे महापुरुष बने हैं। पशु को ट्रेनर जैसी ट्रेनिंग देता है वह ट्रेंड हो जाता है। लेकिन इंसान को ट्रेनिंग देना बड़ा मुश्किल है। इंसान यहीं पर बहुत बड़ी गलती करता है।
हम तात्कालीक बीमारी का हल निकालने के लिए स्थाई बीमारी मोल ले लेते हैं। छोटी सी समस्या का समाधान निकालने के लिए जन्म-जन्म की गुलामी कबूल कर लेते हैं। जिंदगी में कभी मौका मिले तो समर्पण करें तो दिल से और गुस्सा दिमाग से करना चाहिए। धर्म में सोच नहीं होनी चाहिए, समर्पण होना चाहिए। संसार में समर्पण नहीं बल्कि सोच होनी चाहिए।
आचार्य भगवंत आनन्दऋषिजी महाराज और तपस्वीराज श्री गणेशीलालजी महाराज का दीक्षा जयंती के अवसर पर अपने जीवन में उनके उपकारों को आत्मसात करें। यह जिंदगी का गहरा राज है कि गुरु नहीं मिले तो मुसीबत मिलती है। गुरु का आशीर्वाद मिले तो सारी मुसीबतें जीवन से विदा हो जाती है। सूरज से अंधियारा दूर भागता है वैसे ही गुरु से कठिनाइयां दूर भागती हैं।