जैन दिवाकर चौथमल म. की जन्म जयंति – 8 को
चेन्नई. कार्तिक पूर्णिमा के दिन चातुर्मास समापन हो रहा है। इसी दिन धर्म प्राण वीर लोंकाशाह जी की जन्म जयन्ती भी मनाई जाएगी। वीर लोकाशाह एक महान क्रांतिकारी थे। जिन्होंने स्थानकवासी परंपरा का शुभारंभ किया तथा धर्म के नाम पर पनप रहे शिथिलाचार के विरुद्ध आवाज उठाई। उन्होंने शुद्ध संयम मार्ग की आगम सम्मत प्ररूपणा प्रस्तुत कर न केवल स्वयं उस मार्ग का अनुसरण किया अपितु अनेक भव्यात्माएं भी उस मोक्ष मार्ग पर अग्रसर हुई।
यह विचार – ओजस्वी प्रवचन डा.वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में श्रद्धालुजनों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा ‘गंगा’ जब गोमुख से निकलती है तब पवित्र होती है जैसे- जैसे वह हरिद्वार तक पहुंचती है, उसमें अस्थियां, फूल, पूजा सामग्री न जाने क्या-क्या मिलावट हो जाती है। इसी प्रकार कोई भी धर्म-परम्परा प्रारंभ में शुद्ध होती है। काल प्रवाह के साथ-साथ अनेक कुरीतियां उसमें स्थान बना लेती हैं।
जब लोकाशाह जी अहमदाबाद में थे, उस समय वहां के बादशाह के बेटे ने अपने ही पिता को राज्य के लोभ में आकर मार डाला। इस घटना से लोकाशाह जी का मन संसार से विरक्त हो गया। वे संसार के काम- धंधे छोड़ आगम-शास्त्रों की प्रतिलिपि करने लगे। इस कार्य हेतु जब उन्होंने आगम ग्रंथों का अध्ययन किया तो पाया – भगवान महावीर के जो सिद्धांत और शिक्षाएं हैं, उसमें काफी परिवर्तन हो चुका है। धर्म के नाम पर अनेक प्रकार के आडम्बर चलाए जा रहे हैं।
तब उन्होंने स्वयं श्रमण जीवन धारण किया और धर्म की परिभाषा को न केवल पुस्तकों में सीमित रखा अपितु स्वयं भी आचरण कर दिखाया। अनेक दिग्गज संतों उनका विरोध हुआ। वीर लोंकाशाह से प्रेरित होकर 45 भव्य आत्माओं ने दीक्षा धारण की। धर्म के शुद्ध स्वरूप को उन्होंने जनता के समक्ष प्रस्तुत किया।
अंत में धर्म के लिए उन्होंने अपने प्राणों का भी उत्सर्ग कर दिया। श्रीसंघ के सहमंत्री भरत नाहर एवं महिपाल चोरडिय़ा ने बताया- आठ नवबंर को चातुर्मास समापन, विदाई समारोह, धर्म प्राण वीर लोंका शाह जयन्ति एवं जैन दिवाकर चौथमल जी म. की जयंति भी मनाई जाएगी। गौरतलब है कि 10 नवंबर को गुरु भगवंतों की मंगल विहार यात्रा प्रारंभ होगी।