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ज्ञान वाणी

धर्म नाश के कुचक्रों को समझें व अपनी संतति को धर्म से जोड़ें: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

धर्म नाश के कुचक्रों को समझें व अपनी संतति को धर्म से जोड़ें: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

चेन्नई. शुक्रवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज के प्रवचन का कार्यक्रम आयोजित किया गया।

आज के समय में बहुत आत्मघाती हमारी संस्कृति पर हमले हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही एक डिसीजन दिया है कि व्यभिचार करना गुनाह नहीं है। पति-पत्नी का रिश्ता कोई संप्रभुता का नहीं है, यह तो अपनी जिन्दगी दूसरे के हाथों में देने और दूसरे की जिंदगी अपने हाथों में लेकर जीवन पर्यन्त जिम्मेदारीपूर्वक निभाने का रिश्ता है।

यह एक-दूसरे पर अधिकार का रिश्ता है, इसी को हम पति-पत्नी का रिश्ता कहते हैं। कोर्ट वहां किस संपूर्ण आजादी देने की बात कहता है वहां कहता है कि व्यभिचार करना गुनाह नहीं है। पहले इतने बिगड़े हुए और अभी इस तरह के कानून बनाकर भारतीय संस्कृति और रिश्तों के ताने-बाने को तार-तार करने का कुचक्र चलया जा रहा है। अभी हाल ही में एलजीबीटी का कानून बनाया और अब यह दूसरा खतरनाक कानून हमारे देश और संस्कृति पर थोपा जा रहा है। इस कानून से आनेवाली पीढ़ी जो पहले से ही सांस्कृतिक दुष्प्रचार और कुसंस्कृति का शिकार हो चुकी है वह और क्या सीखेगी और किस दिशा में जाएगी यह बहुत भयानक और चिंतनीय समय की ओर इशारा है।

इससे आनेवाली पीढ़ी के मन में कोई भी शर्म और संकोच नहीं रहेगा, कानून की आड़ में सभी स्वच्छंद हो जाएंगे, मनमर्जी करेंगे और हमारे देश की आधारभूत संस्था घर, परिवार और रिश्तों का सत्यानाश कर दिया जाएगा। समय रहते ऐसे कानूनों और भविष्य के प्रति सजग और जागरूक हो जाएं और दूसरों को भी सजग बनाएं। इतने दिन तो लगता था कि कोर्ट सरकार के काम में ही दखल देता है लेकिन अब तो यह हमारे धर्म और संस्कारों में भी घटिया दखल देने लगा है। यह बहुत गंभीर विषय है। अपनी संतानों को इनसे बचाने के लिए उन्हें जिनशासन के खंूटे से बांधना पड़ेगा, उन्हें देव, गुरु और धर्म से जोडऩा बहुत जरूरी है, सभी इसके लिए सम्भल जाएं और दूसरों को भी जागरूक करें।

उपाध्याय प्रवर ने जैनोलोजी प्रैक्टिल लाइफ में आचार्य के गुणों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि साधु होने के लिए 27 गुण और गुरु होने के लिए 36 गुण होना आवश्यक है। आचार्य वही है जिन्होंने अपनी पांचों इन्द्रियों को संरक्षित कर लिया है, नियंत्रण कर लिया है। जिस व्यक्ति का अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण नहीं होता है वह अपने आसपास की नकारात्मकताओं से विचलित होता रहता है, उसकी इन्द्रियां सुरक्षित नहीं रहती। आचार्य की इन्द्रियों पर संयम का आवरण होने से वे सुरक्षित रहती है जिससे उनकी ऊर्जा का अपव्यय नहीं होता व बाहर के संक्रमण और बाधाओं से भी सुरक्षित होने से उनमें धर्म की शक्ति का अपार सामथ्र्य बढ़ता रहता है। जिन्होंने ब्रह्मचर्य की 9 मर्यादाओं का पालन करते हुए चारों काषायों से मुक्त होने को निरंतर प्रयास कर रहे हैं। उनके पांच श्रीमन्त महाव्रत और पांचों सम्मितिय रखनेवाले होते हैं। ऐसे 36 गुणों से संपन्न होनेवाले ही आचार्य होते हैं।

परमात्मा ने कहा है कि जो आचार्य-संपदा से सुरक्षित हो उसके पास जाकर अवश्य बैठना चाहिए, उनके सानिध्य की पवित्र ऊर्जा से आपका जीवन बदलेगा और उनके गुणों को आप ग्रहण करने के अधिकारी बनोगे।

भक्तामर में आचार्य मानतुंग उत्तम पुरुष की व्याख्या देते हुए कहते हैं कि जिनका बोध, ज्ञान और क्रिया उत्तम है, जिनकी पूजा समझदार और ज्ञानीजन करते हैं, जिनकी अर्चना करने को देव भी आतुर रहते हैं। कोई समझदार यदि आपका मूल्यांकन करता है या कमी निकालता है तो स्वयं को सौभाग्यशाली समझें। जब शुभ और अशुभ के बीच मंथन करते हैं उस समय सबसे पहले नकारात्मकता ही निकलती है और जो उसे पार कर लेता है वही आगे बढ़ता है। यदि अमृत पीना है तो हलाहल से आगे निकलना ही होगा। हे प्रभु, आपके ही कारण त्रिलोकी के जीवों को शांति और बोध दिया है। कल्याण के मार्ग का विधान बनाने वाले ब्रह्मा आप हैं। संसार के जीवों के हिंसा, क्रोध और अशुभ को पीने वाले शंकर आप हैं। आप बुद्धि, शांति और कल्याण का दूत बननेवाले उत्तम पुरुष हैं।

उत्तम पुरुष को जो नमन करता है वह उनके गुणों का अधिकारी भी बन जाता है। सुदर्शन ने परमात्मा को नमन किया तो स्वयं अभय होने के अलावा उसने दूसरों को भी अभय बना दिया। इसलिए भयंकर को भी शुभंकर बनानेवाले परमात्मा को नमन करें। वे स्वयं के साथ तीनों भव के जीवों का दु:ख दूर करने और इस संसार का शोषण करने के लिए परमात्मा को नमन करते हैं कि जितने भी दु:खों से घिरे लोग हैं, सभी सुखी हो जाएं, सभी सिद्ध हो जाएं। परमेश्वर का ऐश्वर्य नारकी, देव, मनुष्य, तिर्यंच सभी के लिए है। जिनके जीवन में तीर्थंकर प्रभु की श्रद्धा का सागर है वहां कोई भी विकार के लिए स्थान नहीं है। आपके आश्रय में आने से सभी संशय दूर हो जाते हैं।

भगवान महावीर ने चंडकोशिक, शीलपाणी आदि को अपने स्वयं के कल्याण से पहले उनके कल्याण के लिए प्रयास रहे। अपने जीवन में अभयकुमार के समान बनें, सभी को अभयदान मिले, सभी पापमुक्त हों, किसी को दु:ख न दें। अपने परिवार में किसी के भी मन में बुरे विचार न आए इसके लिए उन्हें धर्म से जोड़ें। जो दूसरों को कल्याण के लिए प्रयासरत रहता है, उसका स्वयं का कल्याण स्वत: ही हो जाता है।

धर्मसभा में सरोबाइ बरलोटा के 11 उपवास और सुभाष खांटेड ने 32वें मासखमण के 23 उपवास के पच्चखान लिए। चातुर्मास समिति द्वारा तपस्वीयों का सम्मान किया गया और उपस्थित जनसमूह ने तपस्या की अनुमोदना की। 29 सितम्बर शनिवार से अखण्ड नवकार जाप और 30 सितंबर, रविवार को प्रात: नवकार कलश अनुष्ठान और स्थापना और दोपहर 2 से 4 बजे तक अर्हम पुरुषाकार ध्यान साधना का कार्यक्रम रहेगा।

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