चेन्नई. पुरुषवाकम स्थित एएमकेएम में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने आचारांग सूत्र और राजा श्रेणिक का चारित्र श्रवण कराते हुए कहा जिस प्रकार ऑडिट के बिना कोई प्रतिष्ठान चल नहीं सकता उसी प्रकार हमें भी स्वयं का ऑडिट या आत्मनिरीक्षण करते रहना चाहिए और जो कमियां स्वयं में मिले उनमें सुधार करना चाहिए।

यदि आपने जो सोचा वैसा ही किया है तो उसका श्रेय भी देना चाहिए, स्वयं को भी और औरों को भी। उसका अनुमोदन करना चाहिए। समय, नियति और कमजोरी का बहना न बनाएं। चुनौतियां हमारे अन्दर में साहस और सामथ्र्य की भावना का विकास करती है, उनसे डरें नहीं, डटकर मुकाबला करें।
संसार में दो प्रकार के जीव हैं- स्थावर काय और त्रसकाय। स्थावरकाय वह जो सुख और दु:ख में कोई प्रतिक्रिया नहीं करता, समभाव रहता है और त्रसकाय जीव सुख के पीछे दौड़ता और दु:खों से दूर भागता है।
आचारांग सूत्र में कहा गया है कि तुम कौन हो यह मत पहचानो, तुम कहां से आए हो यह पहचानो। जीव की जो सोम्या प्रबल होती है, वैसा उसका स्वभाव और प्रकृति होती है।
उससे पता चलता है कि जीव कहां से आया है और जहां से आया है उसका प्रभाव उस पर जरूर रहता है। धर्म को आत्मकल्याण के लिए जीना चाहिए। धर्म को धारण कर, उसे जीया जाता है, उसे व्यापार की वस्तु न बनाएं।
आत्मा शास्वत है, उसे किसी ने बनाया नहीं है। आत्मा स्वयं ही स्वामी है, यह हमें जानना जरूरी है किसी को जिस वस्तु की प्यास होती है, वैसा ही उसका अहसास होता है। 27 जुलाई को गुरु पूर्णिमा, चौमासी पक्खी है। यह वर्षी की शुरुआत और जैन नववर्ष की शुरुआत का दिन है।
Rooparam Jangid
Very Nice.