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धर्म ढोंग से नहीं ढंग से किया जाए: जयधुरंधर मुनि

धर्म ढोंग से नहीं ढंग से किया जाए: जयधुरंधर मुनि

चेन्नई. वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा धर्म की प्रयोगशाला घर से ही प्रारंभ होती है मगर विडंबना है कि व्यक्ति धर्म क्रियाएं धर्म स्थान पर तो करता है मगर घर है उसको आचरण में नहीं उतरता। क्षमा केवल शाब्दिक ना होकर आचरण में हो तो परिवार के किसी सदस्य में वैरभाव नहीं रहेगा।

घर में बुजुर्ग माता-पिता आदि के प्रति भी नहीं रखते हुए जो सेवा की जाती है वहीं सर्वश्रेष्ठ है। धार्मिक स्थल सामाजिक स्तर पर की जाने वाली मानव सेवा आदि से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है अपने पर आश्रित वृद्धजनों की सेवा। घर में अपनी भाषा व्यवहार विवेकपूर्ण होना चाहिए ताकि किसी भी परिवार के सदस्य के हृदय को ठेस ना पहुंचे।

घर के हर कार्य को विवेक से करने पर जीवो की विराधना से भी बचा जा सकता है। अनुकूल प्रतिकूल परिस्थितियों में भी समभाव रखने से घर में कभी क्लेश का वातावरण उपस्थित नहीं होगा। क्षमा, विनय , विवेक, समता, सेवा आदि गुणों को अपनाने से ही घर स्वर्ग बन सकता है। अपने घर को संभालते हुए परिवार के हर सदस्य को अपने कर्तव्य का निर्वाह सम्यक रूप से करना चाहिए।

मुनि ने कहा धर्म ढोंग से नहीं ढंग से होना चाहिए, रूढि़ से नहीं रुचि से होना चाहिए, मजबूरी से नहीं मजबूती से करना चाहिए, धर्म स्वार्थ के लिए नहीं परमार्थ के लिए किया जाना चाहिए, धर्म बाहर से नहीं भीतर से प्रकट होना चाहिए। धर्म का सम्यक् आराधन तभी संभव है जब व्यक्ति धर्म का मर्म समझें।

धर्म दिखावे के लिए नहीं अपितु आत्म कल्याण के लिए किया जाना चाहिए। मनुष्य में आज शिक्षा का स्तर तो बड़ा है लेकिन साथ ही विनय और विवेक में कमी आने लग गई है। उसके पूर्व जयपुरंदर मुनि ने कहा कि हर व्यक्ति का घर के प्रति एक विशेष आकर्षण होता है। इसका मूल कारण यही है घर में व्यक्ति का अधिकार एवं कर्तव्य जुड़ा रहता है। व्यक्ति चाहे तो घर को स्वर्ग भी बना सकता है और चाहे तो घर को नरक भी बना सकता है।

समणी श्रुतनिधि ने युवाओं को मानसिक तनाव एवं अवसाद से मुक्ति प्राप्त कराने के लिए ध्यान का अभ्यास करवाया। बच्चों के लिए ज्ञान ध्यान संस्कार शिविर का भी आयोजन किया गया जिसमें डेढ़ सौ से अधिक बच्चों ने हिस्सा लेकर ज्ञानार्जन किया।

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