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धर्म जीवन में नैतिकता सीखाता है: जयतिलक मुनिजी

धर्म जीवन में नैतिकता सीखाता है: जयतिलक मुनिजी

 

नार्थ टाउन में ए यम के यम स्थानक में चातुर्मासार्थ विराजित गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि आत्मबन्धुओं धर्म जीवन में नैतिकता से जीने की कला सीखाता है सुखी बनने का निर्देश देता है नैतिकता धर्म से ही समझ आती है धर्म ही ऐसा साधन जो नैतिकता ईमानदारी, सत्य सीखता है धर्म ही एक ऐसा प्रशस्त मार्ग है धर्म नीति से जीवन जीने के लिए नीरुपण किया। अहिंसा व्रतों का निरुपण करने के लिए पांच महाव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षा व्रतों का निरुपण किया। भगवान ने अनुकम्पा की दृष्टि से धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए शिक्षा

व्रतों का विधान किया। श्रावक व्रतों को धारण करो या महाव्रतों को धारण करो जिससे संसार के परिभ्रण को सीमित कर सकते है अधर्मी जीवों को धर्म से जुडना है । एक बार धर्म को धारण करके कभी न कभी चरित्र में जरुर आयेंगे । जिस प्रकार पाल बांधने से मर्यादा आ जाती है ।

राम को इसलिए पुरुषोत्तम कहते है क्योंकि उनके जीवन में मर्यादा थी। सारे संसार में पूज्यनीय बन गये। मात-पिता को सुख नहीं दे सकते है तो यह धन क्या काम का ? इसलिए भगवान ने बताया अपना अपना परिग्रह निश्चित करो । मर्यादा करने के बावजूद उसमें आसक्त मत बनो। मर्यादा करने के बाद धन आता है तो उसका सदुपयोग करो। नहीं तो जैसे नालियों में पानी बह जाता हैं वैसे ही धन बह जायेगा। दान को सभी देशों ने समान रूप से अपनाया। परिग्रह की मर्यादा कर ली तो धन सुरक्षित रहता है और धन सुरक्षित रहता है तो हम अपने हाथों से दान दे सकते हैl

जयमल जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित जय जाप के कलश की बोली का लाभ लेने वाले चेंगलपेट निवासी श्री मरूधर केसरी पावन धाम ट्रस्ट जेतारण के चेयरमैन श्री मोहनलाल जी गडवानी परिवार को गुरुदेव जयतिलक मुनिजी म सा ने मंगल पाठ सुनाया और नार्थ टाउन श्री संघ के पदाधिकारियों ने गडवानी जी को मंगल कलश प्रदान किया।

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