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धर्म क्षेत्र अखाड़ा नहीं, इसमें बल, बुद्धि और चालाकी का कोई स्थान नहीं : साध्वी नूतन प्रभाश्री जी

धर्म क्षेत्र अखाड़ा नहीं, इसमें बल, बुद्धि और चालाकी का कोई स्थान नहीं : साध्वी नूतन प्रभाश्री जी

प्रवचन- संसार की बुराईयों से धर्म क्षेत्र को दूर रखें, धर्म जोड़ता है तोड़ता नहीं

Sagevaani.com @शिवपुरी। हमने अपने धर्म को सिर्फ आराधना और धार्मिक क्रियाओं तक सीमित कर दिया है। इसमें साधना का समावेश ना होने से धर्म क्षेत्र संसार की बुराईयों से मुक्त नहीं हो पाया है। जिससे संसार में जो लड़ाई, झगड़ा, प्रतिद्वंदता, अहंकार, कपट आदि कषायों का बोलबाला है। उसी से धर्म क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा है। हमें समझना चाहिए कि धर्म क्षेत्र मल्ल युद्ध स्थल नहीं है इसमें किसी को नीचा दिखाने की भावना नहीं है। संसार में भले ही बल, बुद्धि और चालाकी को अहमियत मिलती हो, लेकिन धर्म में जोडऩे का भाव है। एक दूसरे को प्रेम करने और गले मिलने का भाव है।

धर्मसभा में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने उक्त भावनाएं व्यक्त करते हुए श्रोताओं के मन को झकझोरा और कहा कि संसार की बुराईयों से कृपया कर धर्म क्षेत्र को दूर रखें। धर्मसभा में साध्वी वंदनाश्री जी ने इस सुंदर भजन का गायन किया कि गुरू वचनों को रखना संभालके, ऐसे वचनों में गहरा राज है, जिसने जानी गुरू की महिमा उसका बेड़ा पार है…।

धर्मसभा में साध्वी जयश्री जी ने कहा कि हमें इस जीवन में अपनी आत्मा के दीपक को प्रज्जवलित करना है। शास्त्रों के माध्यम से दी गई भगवान की वाणी को यदि हम अपने जीवन में उतारते हैं तो जीवन सार्थक हो जाता है। उन्होंने कहा कि आत्मा के पोषण के लिए हमें पोषद व्रत समय-समय पर धारण करना चाहिए।

साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि धर्म क्षेत्र में लोगों की रूचि कम नहीं है, लेकिन इसके बाद भी सुखद बदलाव नहीं आ रहा तो इसका एक ही कारण है तो हम सांसारिक क्षेत्र में जिन उपायों, साधनों, संसाधनों और मनोवृत्ति का उपयोग करते हैं वहीं तिकड़में, चालाकी आदि धर्म क्षेत्र में अपनाते हैं। उन्होंने कहा कि धार्मिक क्रियाएं हम चाहें कम करें या अधिक, महत्वपूर्ण यह है कि भले ही धार्मिक क्रिया छोटी हो, लेकिन शुद्ध रूप से होनी चाहिए।

हमारे धर्म में मन, वचन और काया तीनों का समावेश होना चाहिए। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि भले ही हम दान करें, तपस्याएं करें, भगवान की आरती करें, सामयिक करें और संवर करें, लेकिन उन क्रियाओं में यदि अहंकार आ गया या गुस्से का समावेश हो गया तो वह धार्मिक क्रिया व्यर्थ है। उन्होंने कहा कि अहंकार रावण और दुर्योधन जैसे बलशालियों का विनाश कर देता है। हम जानते हैं कि क्रोध हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। इसके बाद भी हम क्रोध को धर्म क्षेत्र में भी नहीं छोड़ पाते हैं। साध्वी जी ने कहा कि धर्म क्षेत्र में सांसारिक बुराईयों का आना बहुत चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि सच्चा गुरू वही है जो समाज की बुराईयों का एक चिकित्सक की भांति निरीक्षण करे और उसका इलाज करे।

संत समाज का डॉक्टर होता है: साध्वी रमणीक कुंवर जी

साध्वी रमणीक कुंवर जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आप चातुर्मास हेतु हमें यहां तन, मन, धन लगाकर लेकर आए हैं ताकि आपका चातुर्मास का समय सार्थक हो सके। उन्होंने कहा कि हमारा भी धर्म है कि हम आपको सही मार्गदर्शन करें।

संत समाज का डॉक्टर होता है। सच्चा गुरू वही है जो समाज की बीमारियों का इलाज करता है। उन्होंने कहा कि किसी भी धर्म या समाज को देख लें वह आज दो धड़ों में बटा हुआ है और दोनों धड़े एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। लेकिन हमें समझना चाहिए कि इससे किसी की नहीं सिर्फ धर्म की हानि होती है। हमारे आचरण को जब बच्चे देखते हैं तो उनमें धर्म के प्रति अश्रद्धा उत्पन्न होती है। यही कारण है कि आज की युवा पीढ़ी धर्म से विमुख होती जा रही है। समय रहते इस बीमारी का इलाज करना चाहिए। धर्म तोडऩा नहीं, बल्कि जोडऩा सिखाता है।

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